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________________ ६०८ भापति ३६, चकलक्खणं ३७, छत्तलम्वणं ३८, चम्मलक्खणं ३९, दंडलक्खणं ४०, असिलक्खणं ४१, मणिलपवणं ४२, कागणिलपखण ४३, वत्थुविज्ज ४४, खंधारमाणं १५, नगरमाणं ४६, चार इत्यत्र समवायानोक्तम्य 'मिढयलाग्यण' इयस्य समाने , उपम्यगढी मचारेण सादृश्यात् ३६, 'चकलाखण' चक्रलक्षण-चकरनगुणदोपविज्ञानम् ३७, 'उत्तलक्खण' उनल क्षण-उत्रस्य शुभाशुभविज्ञानम् ३८, 'चम्मलपवण' चर्मलक्षण, चर्म-ढाल इति प्रसिद्ध तस्य शुभाशुभलक्षणज्ञानम् ३९, 'दडलकरण' दण्टलक्षणम् दण्डस्य शुभाशुभलक्षणविज्ञानम् ४०, 'असिलवग्वणं' असिलक्षणम्-'मलीशतार्ध उत्तम खड्ग' इत्यादिविज्ञानम् ४१, 'मणिलखणं' मणिलक्षण रत्नपरीक्षाविज्ञानम् ४२, 'फागणिलक्खण' काकालक्षणम्-चक्रवर्तिनो रनविशेष काकणी, तस्या विषापहरणमानोन्मानादियोगप्रवर्तकत्वादिजार नम् ४३, 'वत्युविज ' वास्तुविद्याम्-वसति अस्मिन्निति वास्तु-गृहादिक तस्य विधा: वास्तुशास्त्रप्रसिद्ध गृहभूमिगतदापगुणविज्ञानम्, 'वत्युविज' इत्यत्र समवायाङ्गक्तिया 'वत्थुमाण' 'वत्युनिवास' इत्यनयो समावेश ४४, 'खधारमाण' मुर्गे के लक्षणों को जानने का, समवायाङ्ग में उक्त 'मिंढयलक्खणं' (मॅढेका लक्षण) का समावेश यहीं हो जाता है । (३७ चक्लक्खणं) चक्ररन के गुणदोष जानने की, (३८ छत्तलक्खण) छत्र के शुभाशुभ जानने की, (चम्मलक्खण) ढाल के खोटे-खरे लक्षणा को जानने की, (४० दडलक्खण) दड के अच्छे-बुरे लक्षणों को जानने की, (४१ असिलेक्खण) तलवार के लक्षणों की, (४२ मणिलक्षणं) मणिलक्षण जानने की-रत्नका परीक्षा करते की, (४३ कागणीलक्खण) चक्रवर्ती के काकणी रत्न को जानने की, (४४ वत्थुविज्ज) वास्तु (घर) शास्त्र की, समवायाङ्ग में उक्त 'वन्थुमाण' वास्तुमान आर 'वत्थुनिवेश' वास्तुनिवेश इन दोनों का यही समावेश होता है, (४५ रखधारमाण) शत्रु का सिक्ख' स्तिशिक्षा ४पामा समावेश या छ ३५ (गोणलक्खण) गायना क्षA ongaiनी, 36 (कुक्कुडलक्सण) ४४-४न सक्षणे। पाना, सभवायासमा त “मिंढयलक्खण' (घानु सक्षयनी समावेश ही थाय छ ३७ (चफलक्पण) २४२त्नना शुशुहोष पानी, ३८ (छत्तलक्खण) छत्रता शुम मशुम नपानी, 36 (चम्मलक्सण) दासना मोटा तथा म सक्षला नपानी, ४० (दडलक्सण) ६ उन सारा-नरसा सक्ष! पानी, ४१ (असिलक्खण) त२पारना ससपनी, ४२ (मणिलक्षण) भलिना सक्षणी Mg पानी, ४३ (कागणीलक्खण) २४ताना sel Rल पानी, ४४ (वत्थुविज)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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