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________________ - __ ५९२ औपपातिकमरे से वि य सिणाइत्तए, णो चेव णं हत्थ-पाय-चरू-चमस-पखालणट्टयाए पिवित्तए वा ।। सू० ३७॥ मूलम् ---अम्मडस्स णो कप्पइ-अण्णउत्थिया वा अपणउत्थियदेवयाणि वा अण्णउत्थियपरिग्गहियाणि वा चेइयाई पक्खालणट्ठयाए पिरित्तए वा' नो चैत्र सल हस्त-पाद-चर-चमस-प्रक्षालनाऽर्थ पातु वा, शेषपदव्याख्याऽस्यैागमस्योत्तरार्धे एकोनविंशतितमे मूने प्रदर्शिता, अत्र सूत्रे जलस्य परिमाणं प्रदर्शितमस्ति ॥ सू ३७ ॥ टीका-'अम्मडस्स णो कप्पइ ' इत्यादि। 'अम्मडस्स णो कप्पड' अम्बडस्य न कल्पते, अस्य 'नन्दितुम्' इत्यान्वय । कान् पन्दितु न कल्पते । अनाऽऽह-'अण्णउत्थिया वा' अन्ययूथिकान् वा अन्यत्-तीर्थकरमघापेक्षया भिन्न यद् यूथ-सघस्तदन्ययूय तदस्त्येषामित्यन्ययूथिका मास्यादिभिक्षव तान्, 'अण्णउत्थियदेण्याणि वा' अन्ययूथिकदैवतानि वा--अन्ययूथिकाना दैवतानि अन्ययूथिकदैवतानि-अर्हद्भिन्नान देवान वा, 'अण्णउत्थियपरिग्गहियाणि वा चेइयाई' ही कल्पता है, हाथ, पैर, चरु एव चमचा को धोने के लिये नहीं, और न पान क लिये ही। 'आढक' आदि का अर्थ इसी आगम के उत्तरार्ध में उन्नासने सूत्र का व्यारया में प्रदर्शित किया गया है ।। सू ३७॥ 'अम्मडस्स जो कप्पइ' इत्यादि। (अम्मडस्स) इस अम्बड को (अण्णउत्थिया) अन्ययूथिक-तार्थकरघ की अपेक्षा शाक्यादिक भिक्षुओं का मघ, एव (अण्णउत्थियदेवयाणि वा) अन्यमध द्वारा उपास्यरूप से समत अहंत-प्रभु सिवाय दूसरे देवता, (अण्णउत्थियपरिग्गहिया હાથ, પગ, ચરુ તેમજ ચમચા જોવા માટે નહિ અને પીવા માટે પણ નહિ 'आढक' माहिना मथ मे मागमन। तराईमा योगपीशमा सूत्रनी વ્યાખ્યામાં કરવામાં આવ્યા છે (ઋ. ૩૭) 'अम्मडस्स णो कप्पइ' त्यात (अम्मवस्स) से सम्म (अण्णउत्थिया) भी यूथवा-तीर्थ ४२स बनी अपेक्षा राय सिमाना स५, तेभर (अण्णउत्थियदेवयाणि वा) भीत स द्वारा 6पास्य३५यी समत मत प्रा सिपाय मी हे, (अण्णशियपरिमाहियाणि वा चेझ्याइ) तया भी यूयमा ली गये न साधु
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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