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________________ पीयूषयषिणी-टीका स १चम्पावर्णनम् चरिय-दार-गोपुर-तोरणसमुण्णयसुविभत्तरायमग्गा छेयायरियरइयदढफलिहइंदकीला विवणिवणिछेत्तसिप्पियाडपणणिव्वुयसुहा तन-मालका -प्राकारोपरिवर्तिस्थलविशेगा, चरिकाः अस्तप्रमागा सतिदुर्गातराल्वतिमार्गा 'दार द्वागगि-प्रमिदानि, गोपुगगि-गोपुगगि हि नगरस्य मौन्याय प्रतिद्वागने निर्मितानि विचित्रगोमासम्पन्नानि प्रोगद्वागगि तोग्णानि असिद्धानि, एतैरहालकादिभि – उन्नता -दर्शनीय गादिगुगसम्पन्ना मुरिभक्ता -तत्तत्स्याने गमनाय विमागरूपेग रचिता राजमागा यस्या सा। 'छेयायरियरट्यदढफलिइदकीला' ठेकाचार्यरचितदृढपरिघेन्द्रकीला छेकाचार्यग निपुणगिल्पिना, रचित कृत , परिघ = अर्गला, इन्द्रकील =मयोजितकपाटद्वयदृढीकरणाय लोहमयकीलविशेष यटा-कपाटदृढीकरगाय लौह्मयकण्टकपिशेष , यस्या मा तथा, 'विवणिवणिन्छेत्तसिप्पियाइण्णणिव्यमूहा' विपगिनगिकक्षेत्रगिस्याकीर्णनिर्वृतमुखा, तन-विपणीना-हटाना वणिजा च 'छेत्त' क्षेत्र-स्थानरूपा या सा, प्रचुरहाप्रचुरुयापारिंगगसम्पने यर्थ , तथा-गिम्पिमि = कुम्भकारतन्तुनायादिभि -आकीर्गा=परिपूर्गा, अतएव जनाना प्रयोजनसिया निवृतऊपर अट्टालिकाएँ बनी हुई थीं, कोट के मध्यभाग मे जहा पर दरनाजे थे वहा आठ हाथ-प्रमाण चौडा मार्ग या। कोटमे प्रधान तरसाजे थे, जहा से नगरी मे प्रवेग किया जाता था। द्वारा पर तोर ग बहुत उन्नत थे । भिन्न २ स्थानो पर पहुँचने के लिये अलग २ मार्ग बने हुए थे। (छेयायरियरदयदहफलिहदकीला) निपुण शिल्पीके द्वारा रचित-कृत अर्गला से एव इन्द्रकीला-दोनों किंगाडाको परम्पर में दृढ करने के लिये लगाये गये लोहनिर्मित कीलों से इस नगरीके द्वार युक्त थे । (विवणिवाणिछेत्तसिप्पियाइण्णणिव्वुयसुहा) इसके बाजार अनेक दुकानों एव व्यापारियोंसे आकीर्ण रहते थे । नगरीमें कुमार और तन्तुवाय-जुलाहे बहुत थे, इससे હતા ત્યા આઠ હાથના માપના પહોળા રસ્તા હતા કોટમાં મુખ્ય દરવાજા હતા જેમાથી નગરીમાં પ્રવેશ કરાતે હતે હારે ઉપર તરફ ઘણા સરસ હતા, જુદા જુદા સ્થાને પર પહોંચવા માટે જુદા જુદા માર્ગ બનેલા હતા (छेयायरियरइयदढफलिहइदकीला) निपुण शिपाथी सनावद मा ( भागબીયા)થી તેમજ ઈદકીલા-બને કમાડેને પરસ્પરમાં દઢ કરવા માટે લગાડવામાં આવેલ લેઢાના બનાવેલ કલા (ભેગળ) થી આ નગરીના દ્વારે યુક્ત sal ( विवणिवणिछेत्तसिप्पियाइण्णणिव्वुयसहा) सनी २ मन आना તેમજ વ્યાપારીઓથી ભરચક રહેતી હતી નગરીમા કુ ભાર અને વણકર
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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