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________________ पोयुपषिणी-टीका सु ३७ अभ्पडपरिवाजकधिपये मगधदगौतमयो सयाद ५८९ मूलम्-अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स कप्पड मागहए अद्धाढए जलस्स परिग्गाहित्तए, से वि य वहमाणए णो चेव कपायनिद्राविकथालक्षणेन आचरित 'हिंसप्पयाणे' हिंसाप्रदानम्-हिंसाहेतुत्वादग्निविषशस्त्रादिक हिंसोच्यते, कारणे कार्योपचारात , तत्पदानमन्यस्मै क्रोनाभिभूताय अनभिभूताय वा । यदा-हिंस्रप्रदानमितिच्छाया-हिंस-हिंसाकारि मन्त्रादि, तप्रदान-परेपा समर्पणम्, अय तृतीयोऽनर्थदण्ड , 'पावकम्मोवामे' पापकमोपदेश -पातयति नरकादाविति पापम्, तप्रधान कर्म पापकर्म, तम्योपदेश , कृप्यादिमापद्यत्र्यापार प्रवर्तनम् , अय चतुर्थ ॥ मू० ३६ ॥ टीका-'अम्मडस्स' इयादि । 'अम्मडस्स ण परिचायगस्स कप्पड' अम्मडस्य ग्वछ परिवाजकस्य कल्पते 'मागहए अद्धाढए जलस्म परिरगारित्तए' मागरमधाहक जलस्य परिग्रहीतुम् , 'से वि य किये गये कार्य का नाम प्रमादाचरित अनर्थाट है। हिंसा के हतु होने से अग्नि, विष एव गख आदि, कारण में कार्य के उपचार से हिंसास्वरूप कहे गये हैं। इन हिंसा के कारणों को किसी कोपयुक्त व्यक्ति के लिये अथवा मोधरहित व्यक्ति के लिये देना सो हिंसाप्रदान नाम का अनर्थदइ है। आत्मा को जो नरक में डाल उसका नाम पाप है, इस पापप्रधान कर्म करने का उपदेश देना अथवा स्वयं भी कृप्यादि सापद्यरूप व्यापार में प्रवृत्ति करना सो पापोपदेश नामका अनर्थदड है ॥ ३६॥ 'अम्मडम्स ण परिवायगस्म' टत्यादि। (अम्मडस्स ण परिचायगस्स) इस अम्बड पग्निानक को (मागहए अदाढए ) मगधदेश प्रसिद्ध अर्ध-आढक-प्रमाण (जलस्स परिग्गाहित्तए कप्पइ ) जल વિડવારૂપ પ્રમાદથી આચરેલા-કરેલા કાર્યનું નામ પ્રમાદાચરિત-અનર્થદ ઠ છે હિંસાના હેતુ થાય તેવા અગ્નિ, વિષ તેમજ શસ્ત્ર આદિ, કારણમાં કાર્યો ઉપચાર થવાથી હિસાસ્વરૂપ કહેવાય છે આ હિમાના કારણેને કેઈ ક્રોધાયમાન વ્યક્તિને કે વિના ક્રોધવાળા વ્યક્તિને માટે આપવા તે હિનાપ્રદાન નામને અનર્વડ છે આત્માને જે નરકમાં નાખે તેનું નામ પાપ છે આ પાપપ્રધાન કર્મ કરવાને ઉપદેશ દે અથવા પોતે પણ કૃષિ આદિ સાવદ્યરૂપ વ્યાપારમાં પ્રવૃત્તિ કરવી તે પાપપદેશ નામને અનર્થદક છે (જૂ ૩૬) 'अम्मडम्स ण परिव्वायगस्स' इत्यादि (अम्मडस्स ण परिव्यायगस्स) मा सम परिका (मागहए अद्वादए) भगशिप्रसिद्ध असा प्रभा (जलस्स परिगाहित्तए कप्पइ)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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