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________________ ८८० - समुप्पण्णाए जणविम्हावणहेडं कंपिछपुरे णयरे घरसए जाव वसहि उवेइ। से तेणटेण गोयमा! एवं वच्चइ-अम्मडे परिवायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहि उवेड ।। सू० ३१॥ से अम्मडे परित्यायगे' तत सलस अम्बड पग्निजक , 'तीए पीरियल द्वीए वेउब्धियलद्धोए ओहिणाणलद्धीए समुप्पण्णाए' तया वीर्यल या वैकियल च्याऽधिज्ञानल ध्याच समुत्पनया 'जणपिम्हावणहेउ' जनविस्मापनहेतो , 'कपिलपुरे णयरे घरसए जाव वसहिं उवेइ' काम्पियपुरे नगरे गृहशते यावद्वसतिमुपैति, ‘से तेणटेणं गोयमा । एव बुच्चइ' तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-'अम्मडे परिवायए कपिलपुरे णयरे घरसए जाव सहिं उवे' अम्बड परिबाजक फाम्पिल्यपुरे नगरे गृहाते यावदसति मुपैति ॥ सू० ३१ ॥ अम्मडे परिवायगे तीए पीरियलद्धीए वेउच्चियलद्धीए ओहिणाणलद्धीए समुप्पणाए) इसके बाद उत्पन्न हुई उन चीर्यलन्धि, वैक्रियलब्धि एव अवधिज्ञानलधि द्वारा यह (जणविम्हावणहेउ) मनुष्यों को आश्चर्यचकित करने के लिये (कपिल्लपुरे पयरे घरसए जाव वसहि उवेइ) कपिल्ल नगर में सौ घरों से भिक्षा करता है, एव उन्हीं मे विश्राम करता है। (से तेणटेणं गोयमा ! एव बुच्चइ ) इस आशय से, हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हू (अम्मडे परिवायए कपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहि उवेइ) कि अम्बड परिव्राजक कपिल्लपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है और सौ घरों में निवास करता है । स० ३१॥ - - त्पन्नं 25 (तए ण से अम्मडे परिवायगे तीए चीरियलद्धीए वेउब्वियलद्वीए ओहिणाणल्द्धीए समुप्पणाए) त्यार पछी पन थ्येही ते पायध, बेलिविस तेभर मधिज्ञानसा थे (जणपिम्हावणहेउ) मनुष्याने मायजित ४२वा माटे (कपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहि उवेइ) पिरसपुरनगरमा मी घरीथी मिक्षा ४२ छ तभ४ मा विश्राम ४२७, (से तेणटेण गोयमा । एन वुच्चइ) मा माशयथी 3 गौतम! ६ सेभ छ (अम्मडे परिव्वायए कपिल्लपुरे घरसए जाव वसहि उई) કે અખંડ પરિવ્રાજક કપિલપુર નગરમાં એ ઘરમાં આહાર કરે છે અને સે ઘરમાં નિવાસ કરે છે (સૂ૦ ૩૧).
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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