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________________ ओपपालिका - - - - - - - किचा बंभलए कप्पे देवताए उपवण्णा । तहि तेसि गई। दस मागरोवमाई ठिई पण्णता, परलोगस्स आराहगा, सेसं तं चेव ॥ सू० २७॥ मूलम्-वहजणे णं भते! अण्णमण्णस्स एवमाइ(परावृत्ता, 'समाहिपत्ता' समाधिप्रामा-उपगान्तहत्या, 'कालमासे काल किंचा' कालमासे काल कृया, 'चमलोए कप्पे देवत्ताए उपवण्णा' ब्रह्मलोके क पे देववेनोपपन्ना , देशपिरतिफल त्वेपा परलोकाऽऽगधक वमेव । परिमाजकक्रियाफा ब्रह्मलोकगमनम् । 'ताई तेति गाता तेपा गति , 'दस सागरोषमाइ ठिई पणता' दासागरोपमागि स्थिनि प्रजासर, 'परलोगस्स आराहगा' परलोकरागरसा सती यर्ग, 'ससे त चे' शेष तदेर । मू० २७॥ टीका-'बहुजणे ण भते !' इत्यादि । बहुजन जनसमूह खल हे महत। आलोचना की, पश्चात् वे उनसे परावृत्त हुए। फिर (समाहिपत्ता) समाधि प्राप्त कर (कालमासे काल रिचा भलोए कप्पे देवताए उपया) काल-अवसर में काल करके बालो कप मे देव की पर्याय से उपन्न हुए। (तहिं तेसिं गई, दससागरोत्रमाइ ठिई पमत्ता, परलोगस्स आराहगा, सेस तचे) वहीं पर उनकी गति प्ररूपित करन में आई है। स्थिति इनकी १० सागर प्रमाग हे । ये परलोक के नियम से आराधक कहे गये है। शेर पहिले की तरह समझना चाहिये ।। सू २७॥ 'बहुजणे ण भते । इत्यादि । पुन गौतमस्थामा ने भक्तिपूर्वक प्रभु से पूछा कि (भते) हे भगवन् ! (बहु - भने समाधि प्रास ४शन ( कालमासे काल किच्चा बमलोए कप्पे देवताए उपवण्णा) 14-मत्रभरे इस रीने प्रहार ८५मा पनी पायथी Surन यय (तहि तेगि गई, दससागरोगमाइ ठिई पण्णत्ता, परलोगरम आरा हगा, सेस त चेप) तेमनी गति ३पिन ४२वामा मापी छ तेमना રિતિ ૧૦ સાગર પ્રમાણ છે તેઓને નિશ્ચિતરૂપથી પરલોકના આધારક કહેવામાં આવ્યા છે બાકીનું અગાઉની પેઠે સમજી લેવું જોઈએ ( ૨૭) 'घजणे ण भते त्या पणी गौतम स्वाभीमे मतिY४ प्रभुने पूछयु (भते 1) मन
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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