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________________ ५५८ औषपातिकसूत्र तहि तेसिं गई, तहि तेसि ठिई। दससागरोचमाई ठिई पण्णत्ता। सेस त चेव ।। सू० २०॥ । मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्यायगस्त सत्त अंतेवासिसयाई गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए महानईए उभओकूलेणं कंपिल्लपुराओ जयराओ तेर्सि गई, तहि तेसि ठिई' तर तेपा गति , तर तेपा स्थिति । 'दस सागरोवमाड ठिई पण्णत्ता' दश सागरोपमानि स्थिति प्रज्ञाप्ता, सेस त चेत्र' शेष तदेव ॥ सू० २० ॥ टीका-तेणे कालेण तेण समएण' इत्यादि । तेण कालेण समएणं' तस्मिन् काले तस्मिन् समये 'अम्मडस्स परिवायगस्स सत्त अतेवासिसयाई' अम्बडस्य परिवाजकस्य समान्तेवासिगतानि सप्तशतमायका अन्तेवामिन-शिष्या । 'गिम्हकालसमयसि जेट्ठामूलमासमि' ग्रीष्मकालसमये ज्येष्ठामूलमासे-ज्येष्ठानक्षत्रे मूलनक्षत्रे वा पूर्णिमा यस्मिन् तस्मिन् , ज्येष्ठमासे इत्यर्थ । 'गगाए महाणईए उभओंगई है। इस स्थिति का प्रमाण (दस सागरोवमाइ) चहा १० दस सागर है, (सेस त चेव) यावत् ये आराधक नहीं होते है | सू० २०॥ 'तेणं कालेण तेण समएण' इत्यादि। . (तेण कालेण समएण) उम काल में एव उस समय में (अम्मडस्स परिवायगस्स) अम्बद नामक परिव्राजक (न्यासी) के (सत्त अतेवासिसयाइ) सात सौ शिष्य (गिम्हकालसमयसि) ग्राम काल के समय (जेद्रामलमासमि)ज्येष्ठ मास में (गगाए मनी स्थिति सोभा पन ४२सी छे २ स्थितिनु प्रभात (दस सागगेवमाइ) त्या १० ६म भानु छ (सेस त चेत्र) यावत तेमा राघ3 डता नथी (सू २०) " तेण कालेण तेण समएण" त्यात , (तेण कालेण तेण ममएण) ते मा भारत समयमा (अम्मडस्स परिवायगस्स) 243 नाभना परिवार (सन्यासी)ना (सत्त अतेवासिस. सथाइ) सातसे शिष्य (गिम्हकालसमयसि) श्रीभ जना समयमा (जेवामूलमा समि) २४ महिनामा (गगाए महाणईए उमओ कूलेण) मानहाना बन्ने तर
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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