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________________ औपपातिकवाने अहव्वणवेय-इतिहासपंचमाणं निघंटछटाणं संगोवगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा पारगा धारगा सडंगवी सहितंतविसारया, संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइपरिवाजका -प्राग्वर्णिता अष्टौ नाह्मणपग्निाजका , अष्टौ क्षत्रियपगिाजका , ते कीदृशा । अनाऽऽह-'रिउवेय--यजुव्वेय-सामनेय-अयणय-इतिहासपचमाण' ऋग्वेदयजुर्वेद-सामवेदाऽथर्ववेदेतिहासपञ्चमानाम्-ग्वेदादयश्च वारो वेदा , तथा इतिहास पञ्चमा येपा ते इतिहासपञ्चमा तेषाम् , 'निघटुग्याण' निघण्टुपठानाम्-निघण्टुर्नाम कोश पष्ठ =पटम्यापूरको येषा तेपा 'सगोवगाण' सागोपागानाम्-अङ्गरपाङ्ग सहितानाम्, 'सरहस्साण' सरहस्याना रहस्ययुक्तानाम् , 'चउण्डं चतुर्णाम्, 'वेदाण' वेदानाम्, 'सारगा' सारका =अध्यापनद्वारेण प्रवर्तका , अथवा स्मारका अन्येपा विस्मृतस्य स्मारणात् , 'पारगा' पारगा -मपूर्णवेदार्थजानपन्त , 'धारगा' धारका धारयितु क्षमा , 'सडगवी' पडङ्गपिद , 'सद्विततरिसारया पष्टितन्त्रविशारदा -पष्ठितन्त्र कपिलसिद्धान्त - तत्र विशारदा =पण्डिता , ' सखाणे' सरयाने गणितविषये 'सिक्खाकप्पे ' शिक्षाकल्पेजाति के (रिउवेय-यजुन्वेय-सामवेय-अहब्बणवेय-इतिहासपचमाण निघटुट्ठाण सगोवगाण सरहस्साण चउण्ह वेदाण) मग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, इतिहास,' निघटु इन उह शास्त्रों के तथा इन शास्त्रों के और भी जितने अग और उपाग हे उनके एव रहस्य सहित चार वेदों के (सारगा) पाठन द्वारा प्रचारक होते है, था दूसरों के लिये ' विस्मृत हुए इन के स्मारक होते है (पारगा) स्वय भी इन सब शास्त्रों के ज्ञाता होते है, (धारगा) इन सबकी धारणा वाले होते है। इसलिये ये (सडगवी) पडगवेदवित् कहे जाते है। ये (सद्रिततविसारया) पटिता-कपिलशास्त्र के भी वेत्ता होते है, (सखाणे सिक्खा मा क्षत्रिय तिना (रिउवेग्न-यजुवेय-सामवेय-अहव्वणवेय-इतिहास-पचमाण निघटुछट्ठाण सगोवगाण सरहस्साण चउण्ह वेदाण) ये, यो , भाभव, અથર્વવેદ, ઈતિહાસ, નિઘ ટુ આ છ શાસ્ત્રોના, તથા આ શાસ્ત્રોના બીજા 241 मने 6 छे तमना, २७स्यसहित या२ वहाना (सारगा)। પઠન દ્વારા પ્રચારક હોય છે, અથવા બીજાને વિસ્મરણ થયેલ હોય તો તેમને યાદ ४शनास य छ, (पारगा) पोते पण ते शास्त्री बना। राय छ, तथा तसा (धारगा) मा मधानी धारापासा डाय, तथा तसा (सडगवी) १९ वित ४९वाय छ तमो (सद्विततविमारया) परितत्र-पिताना पर
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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