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________________ पीयूषपिणी टीका सृ १३ वानप्रस्थादीनामुपपातविषये गौतम प्रश्न ५३५ परिसडिय - कंद-मूल-तय- पत्त - पुप्फ-फलाहारा जला- भिसेयकठिण - गायभूया आयावणाहि पंचग्गितावेहि इगालसोल्लियं कंडुसोल्लियं पिव अप्पाणं करेमाणा वहूडं वासाइं परियागं पाउणंति, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेण जोड़ भुञ्जते कन्दमूलपचामपि तथाविधानामेवोपयोग कुर्वते ते, ' जलाभिसेय - कठिण - गायभूया' जलाभिषेक - कठिन - गान-भूता जलाभिषेकेण कठिन यद् गात्र तत् प्राप्ता ये तथा, 'हिं' आतपनाभि - प्रग्वररनिकराऽऽसेवनाभि, ' पचग्गितावेहिं ' पञ्चाग्नितायै चतसृषु दिक्षु प्रज्वालितधतुर्भिरग्निभि उपरिभागे सूर्यकिरणपश्चमैर्ये तापास्तै, 'उगालसोल्लिय ' अङ्कारपत्यम् - प्राकृते-' पच्' धातो स्थाने 'सोल्ल' आदेगो भवति । अङ्गारैर्निर्धूम-बलदनलपिण्डैरिव पक्वम् ' कडुसोल्लिय ' कन्दुपक्वम् - कन्दु चणकादिभर्जनपान, तत्र पक्वम्, 'अप्पाण करेमाणा ' आमान शरीर कुर्वाणा, 'वहूई वासाइ परियाग पाउणति' बहनि वर्षाणि पर्याय = वानप्रस्थपर्याय पालयन्ति, पालयित्वा, गिरे हुए या किसी के द्वारा लाये गये कद, मूल, त्वक्, पत्र, पुष्प एव फलों का आहार करने वाले, (जलाभिसेय-कठिण - गाय भूया) जलाभिषेक करने से जिनका शरीर कठिन हो गया है ऐसे, (आयावणाहि पचग्गितावेहिं इगालसोल्लिय कडुसोल्लिय पित्र अप्पाण करेमाणा ) तथा आतापना - प्रखर सूर्य की किरणों के सेवन से, पचाग्नि के नाच बैठकर तापों के सहन करने से अगार मे पक्व हुए जैसे एव भाड में भृजे हुए जैसे अपने सरीर को करने वाले ये वानप्रस्थ तापस जन (बहूई बासाइ परियाग पाउणति) बहुत वर्ष पर्यन्त वानप्रस्थ तापस की पर्याय का पालन करते हुए ( कालमासे काल किच्चा) सावी आपेक्षा छ, भूल, छात्र, पत्र, पुष्य, तेभन्न जनो आहार खावाला, (जलाभिसेय - कढिण- गाय-भूया) सनो अलिषे ४२वाथी लेना शरीर उठणु थ गया होय सेवा, (आयावणाहिं पचग्गितावेहिं इगालसोल्लिय कडुसोल्लिय पिव अप्पाण करेमाणा) तथा આતાપના-પ્રખર સૂર્યના કિરણાના સેવનથી, પચા ગ્નિના વચ્ચે બેસીને તાપ સહન કરવાથી, અગારમા પકાવેલ હોય તેવા તેમજ હાડલામા ભૂજેલ જેવા પેાતાના શરીરને કરી નાખવાવાળા તે વાનप्रस्थ तापसन्न (तपभ्वी ) ( बहूइ वासाइ परियाग पाउणति) धथा परभो सुधी पानप्रन्थ तापसनी पर्यायनु चासन डरता ४२ता (कालमासे काल किच्चा)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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