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________________ ५२६ জীবনি पंक-परितावियाओ ववगय-खीर-दहिणवणीय-सप्पि-तेल्ल. गुल-लोण-मह-मज-मस-परिचत्त-कया-हाराओ अप्पिच्छाओ अप्पारंभाओ अप्पपरिग्गहाओ अप्पेणं आरंभेणं अपेणं समास्ट-जल्ल-मल्ल-पर-परितापिता अस्नानकेन स्नानाऽभावेन हनुना स्वेदजल्लमन्लपके. -स्वेद = प्रस्वेद , जल्ल =शुष्क प्रस्वेद , मल रजोमात्र कठिनीभूतम्, प, आदीभूत रज', ते परितापिता =क्लेगिता -भृता इत्यर्थ , परगय-सीर-दहि-णरणीय-सप्पि-तेल-गुललोण-महु-मज-मस-परिचत्त-कया-हाराओ' व्यापगत-क्षीर-दधि-नानीत-सपिस्तैल-गुड-लवण-मधु-मय-मास-परित्यक्त-कृताऽऽहारा -ज्यपगतानि क्षीरदरिनवनीतसपीपि यस्मात् स व्यपगतक्षीरदधिनवनीतसपि, तैलगुडलवणमधुमयमासै परित्यक्त , तत पदद्वयस्य कर्मधारय , क्षीरादिमासपर्यन्तरहित इत्यर्थ , तादृश कृत -सेपित आहारो यामिस्तास्तथा, 'अप्पिच्छाओ' अपेच्छा , 'अप्पारभाओ' अन्पारम्भा -अन्य आरम्भ -पृथित्र्याधुपमर्दनत्र्यापारी यासा तास्तथा, 'अप्पपरिग्गहाओ' अल्पपरिग्रहा -अन्पधनधान्यमाहा, 'अप्पेण आरभेण अप्पेण समारभेण अप्पेण आरंभसमारभेण' अन्पेनाऽऽरम्भेण अन्पेन पसीना से लथपथ रहा करती है, एव पशीना के शुष्क हो जाने से उस पर बैठी हुई धूलि, काले कठिन मैल के रूप में परिणमित होकर उनके शरीर को मलिन बनाये रहती है। (ववगय-खीर-दहि-गवणीय-सप्पि-तेल-गुल-लोण-मह-मज्ज-मस-परिचत्तकया-दाराओ) कितनीक ऐसी होती हैं कि जो दूध, दही, मक्खन, सर्पि-धुत, तैल, गुड, नमक, मधु, मद्य, एव मास से वर्जित आहार किया करती हैं, (अप्पिच्छाओ) और जिनकी इच्छाएँ स्वभावत अल्प हुआ करती है, (अप्पारभाओ अप्पपरिग्गहाओ अप्पेण आरंभेणं अप्पेण समारभेग अप्पेण आरभसमारभेण वित्ति कप्पेमाणीओ) घे अल्पआरभ से, परितावियाओ) उसी की हाय छ १२ स्नान ने ४२पाथी पसीनाथी લથપથ રહ્યા કરે છે, તેમજ પગને સુકાઈ જવાથી તેના પર ઉડીને પડેલી ધૂળ કાળા અને કઠણ મેલના રૂપે પરિણામ પામીને તેમના શરીરને મલિન मनाव्या ४२ छे (वय-खीर-दहि-णवणीय-सप्पि-तेल्ल-गुल-लोण-महुमज-मस-परिचत्त-कया-हाराओ) उसी पी हाय छे २ दूध, दही, भामरा, समि-धी, तेस, माण, भी, भय, मध, तमन भासथी पनित सार व्या ४२ छ, (अप्पिच्छाओ) भने भनी छायी पलायी ner २६॥ ४२ छ (अपारभाओ अपपरिग्गहाओ अप्पेण आरभेण अप्पेण
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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