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________________ - - - - ऑपपातिकको लगा तरुपक्खंदोलगा मरुपाखंदोलगा जलपवेसी (जलणपवे. सिगा) विसभक्खियगा सत्थोवाडियगा वेहाणसिया गेडपट्ठगा कतारमयगा दुभिक्खमयगा असंकिलिपरिणामा ते कालमासे मृताश्च तथाभिधीयन्ते, 'तरुपक्रवदोल्गा' तरपक्षान्दोलका तरपक्षाग्झम्पादानेन मृता 'मरुपक्खदोलगा' मरुपक्षान्दोलका -मरुपक्षे मरुभूमौ आत्मानमान्दोलयन्ति ये ते तथा, मरभूमौ मृता इत्यर्थ , 'जलपवेसी' जलप्रवेशिन -जले निम-ज्य मृता इत्यर्थ , ' जलणपवेसिगा' ज्वलनप्रवेशिका --भानौ मृता इत्यर्थ , 'विसभक्वियगा' विषभक्षितका - विपभक्षणेन मता इत्यर्थ , ' सत्योराडियगा' शस्रोत्पास्तिका -गण-क्षुरिकादिना विदारिता सन्तो मृता, 'वेहाणसिया' वैहायसिका --वृक्षशाखाटावुद्धित्याद् विहायसिआकाशे यन्मरण भवति तदेहायस, तदस्ति येषा ते वैहायसिका , 'गेद्धपढगा' गृघस्पृटका --गधे =पक्षिविशेषै स्पृष्टस्य विदारितस्य करिकरभरासभादिमृतम्लेवरस्याभ्यन्तरे गत्वा ये मृतास्ते गृध्रस्पृष्टका 'कतारमयगा' कान्तारमृतका अरण्ये मृता , 'दुभिक्खमयगा' दुर्भिक्षमृतका --दुर्भिक्षे मृता इत्यर्थ , 'अममिलिट्ठपरिणामा' अमक्लिष्टपरिणामा , झपापात कर के मर जाते हैं, (मरुपक्खदोलगा ) मरस्थल में मार्ग भूलकर जो उसी में मर जाते है, (जलपवेसी) जल में डूब कर जो मर जाते हे, (जलणपवेसिगा) अग्नि से जलकर जो मर जाते है, (विसभक्खियगा) विष खाकर जो मर जाते है, (सत्यो वाडियगा) शस्त्रों से आहत होकर जो मर जाते है, (वेहाणसिया) वृक्षा पर लटक कर जो मर जाते हैं, (गेद्धपद्रगा) गृद्धों द्वारा विदारित ऐसे फरि हाथी एव करम-ऊट आदि के कलेवर में प्रविष्ट होकर जो मरते हैं. (कतारमयगा) जो जगल में ही मर जात है, (दुभिक्खमयगा ) दुर्भिक्ष से पीडित होकर जो मौत के घाट उतर जाते है, (अस. अ पायात शने (हान) भरण पाम छ, (तरुपक्खदोलगा) वृक्ष ५२थी ॐ पायात ४शन रे भरण पामे छ, (मरुपक्खदोलगा) भरयसभा २स्तो मूदीने तेभार रे भरी य छ, (जलपवेसी) समा मीन भर पामे छ, (जलणपवे सिंगा) मनिया मजीन २ भरी छ, (विसभक्सियगा) 3२ माईन से भरा पामे छ, (सत्योवाडियगा) शीना धातथी २ भरी जय छ, (वेहासिया) वृक्षो ५२ टीन भर पामेछ, (गेद्धपगा) सीधेवा। विद्यारित હાથી તેમજ કરઉટ આદિના શરીરમાં પ્રવિણ થઈને જે મરણ પામે છે, (कतारमयगा) २४ गसमा भर पामेछ, (दुभिक्खमयगा) निक्षथी पाचन
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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