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________________ F पीयूषवर्षिणी-टीका स १ चम्पावर्णनम् " , कुक्कुड-संडेय-गाम-पउरा उच्छु-जव - सालिक लिया गो-महिस-गवेलगप्पभूया आचारवंतचेsय जुवड - विविह-सण्णिविद्य बहुला उक्कोडि'कुकुड- सडेय - गामपउरा' कुक्कुटपाण्डेयग्रामप्रचुरा-कुक्कुटाक्ष पाण्डेया लघुगोपतयक्ष कुकुटपाण्डेया, तेषा आमा = ममृग ते प्रचुरा = प्रभूता यस्या मा तथा । 'उच्छु-जत्रमालि-कलिया' क्षुयवालिका शालिभि करिना = युक्ता, अनेन प्रजाया पोषगहतुरभिहित । रिक्तोदरागा हि कार्यक्षमता न भवति ।' गो-महिस- गवेलग-प्पभूया गोमहिपगवेलकप्रभूता - गानो, महिष्य, गवेलका = मेपा, ते प्रभूता यस्या मा तथा 1 'यारवत चेडयजुवड - विविध-सप्णिविट्ठ-बहुला' आकाग्वच्चेययुवनिविविधमन्निविष्टबहुला - आकारवन्ति =मुन्दराकृनिकानि यानि उद्यानानि तथा युवतीना विविधानि सन्निपिष्टानि=नर्तक्यादीना मनिवेशनानि भवनानि बहुलानि यन्या सा तथा, है, अत सेतुसीमा को हुई थी । ( कुक्कुट - सडेय - गामपउरा ) इस नगरी में कुक्कट एव छोटे-छोटे मॉढ नहुत थे । (उन्छु - जव-सालि= कलिया )इक्षु, जव एव गाली का ढेर का ढेर यहा के खेतों में लगा रहता था इससे प्रजाजन के पोषण म किसी भी प्रकार की बाधा किमी भी समय उपस्थित नहीं होती थीं। बात भी ठीक है-भूखे पेट कुछ भी नहीं हो सकता । ( गो-महिस-गवेग-प्पभूया ) गाय और भैंसों को पक्ति की पक्ति इस नगरी म दृष्टिपथ होती थी, इससे दूध और घी का अभाव जनता में कभी भी दिखलाई नहीं पटता था । मेप भी यहाँ अधिक मात्रा में थे ( आयारबतचेsय - जुबड - विविध-सण्णिविट्ट - बहुला) यहा बडे २ सुन्दर उद्यान थे, एव युवति नर्तकियों के अनेक भवन भी थे । (उकोडिय - गायगठिभेयग-भड - तक्कर-खडक्ख ७ પ્રકારના વિવાદ પેદા થાય છે એટલે મૈતુસીમા શ્વામા આવી હતી (कुक्कुड- सडेय - गामपरा ) मा नगरीमा भुर्गा तेभन नाना नाना साद घाला हुता ( उच्छु- जव - सालि - कलिया) शेरडी, ४व तेभ४ शासीमोना ढगये ढगला सही ना ખેતરમા લાગેલા રહેતા હતા, તેથી પ્રજાજનના પોષણમા કોઈ પણ પ્રકારની ખાધા ટાઈપણ સમયે ઉપન્થિત થતી નહેાતી વાત પણ ખરાખર કે ભૂખ્યા पेटे मेथी अर्थ थाय नहि (गो-महिस-गवेलग - पभूया ) गाय भने ले सोनी હારની હાર આ નગરીમા નજરે જોવામા આવતી હતી તેથી દૂધ અને ઘીને અભાવ જનતામા કઢી પણ લેવામા આવતા ન હતા ઘેટા પણ અહી વધારે प्रभाशुभा हता (आयारव तचेइय - जुवइ-विनिह-सण्णिविट्ठ-बहुला) त्या भोटा भोटा સુદર ઉદ્યાન (ભાગ) હતા તેમજ યુવતી નકએ (નાચ કરનારએ)ના અનેક भवन पशु ता (उकोटिन- गायगठिभेयग-भद-तक्कर - खडरक्स - रहिया) भा
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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