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________________ - - पोयूषषिणी-टीका स् ६१ सुभप्रादीना स्वस्थाने गमनम वदित्ता जामेव दिस पाउन्भूयाओ तामेव दिस पडिगयाओ' एवम् उदित्वा यस्या व दिश प्रादुर्भूता , तामेव दिश प्रतिगता ॥ सू० ६१ ॥ इति श्री-विश्वविख्यात-जगहल्लम-प्रसिदवाचक - पश्चदशभापालितललितकलापालापक___ प्रविशुद्धगधपधनैका थनिर्मापक--वादिमानमर्दक-श्रीशारत्रपति कोल्हापुरराज-प्रदत्त जैनशास्त्राचार्य-पदपित-कोन्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर--पूज्यश्रीघासीलालनतिविरचितायाम् औपपातिकसूत्रम्य पीयूषर पिण्याच्याया व्याख्याया समवरणनामक पूर्वाई सम्पूर्णम् । तामेव दिस पडिगयाओ) इस प्रकार भक्तिभाव से प्रमु की स्तुनि करके वे सब रानियाँ जहा से आई थी वहीं वापिस चली गयौं । सू० ६१॥ ॥इति औषपातिक सूनका समवसरणनामक पूर्वाई सपूर्ण । जामेव दिस पाउन्भूयाओ तामेव दिस परिगयाओ) मा रे तिलायी પ્રભુની રતુતિરૂપે નિવેદન કરીને તેઓ બધી રાણીઓ જ્યાથી આવી હતી ત્યા પાછી ચાલી ગઈ (સ ૬૧) ઈતિ ઔયપાતિક સૂત્રનુ સમવસરણ નામક પદ્ધ સ પૂર્ણ
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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