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________________ ૨૭૦ aterfoods सयाए ३, अमच्छरियाए । देवेसु- सरागसंजमेणं १, संजमासंजमेणं २, अकामणिज्जराए ३, वालतवोकम्मेणं ४ | तमाइक्खड़ स्थानवा मनुजय प्राप्नुयति । देवाभिभूतानि चत्वारि स्थानानि दर्शयति- 'देवे' इत्यादि । देवेषु - ' सरागसजमेणं ' मराग यमेन -रागेग = आसक्त्या सहित सगग स - चासौ स्यमथ सरागयू नमस्तेन - सकपायचारित्रेण १, 'संजमासजमेण ' सयमामयमेन= देशमयमेन २, ' अकामणिज्नराए' अकामनिर्जरया - अकामेन - अभिलापमन्तरेण निर्जग= क्षुधादिसहन तया ३, 'वालतोकम्मेण ' बालतप कर्मणा = नालसाहस्याद् बाला = मिथ्याहा, तेषा तप कर्म चालतप कर्म, तेन ४, एते स्थानेजवा देवभव प्राप्नुवन्तीति भाव । पुन प्रकारान्तरेण तमाइक्सइ ' तदाख्याति तत् कथयति 'जह णरगा गम्मती' 1 4 कराने वाले कर्मों का उपार्जन करते हैं । (देवे) चार कारणों से जीव देवगति में उपन्न होते है । वे चार कारण ये है - ( सरागसजमेणं) सरागमयम का पालन करना १, (सजमासंजमेण) देशनिरति पालन करना २, (अकामणिज्जराए) अकामनिर्जरा ३, एव (बालतवोकम्मेण) बाल तपस्या ४ । जिस सयम मे गग ( आसक्ति ) विद्यमान होता है उस का नाम सरागमयम है। मतलन - कपायसहित चारित्र का पालना सरागसयम है । १२बारह व्रतों का - देशविरति का धारण करना इसका नाम रूयमासयम है । अभिलाषा - इच्छा के विना क्षुधा आदि का सहन करना इसका नाम अकामनिर्जरा है। मिथ्यादृष्टियों के तप का नाम बालतप है। इन कामों के करने से जीव देवगति में जाने योग्य कर्मों का उपार्जन करते हैं । (जह परगा गम्मती जे गरगा जाय वेयणा गरए । सारीरमाणसाइ दुक्खाइ 1 गतिभा उत्पन्न ४राववावाजा उभेनु उचाल्न रे छे (देवेसु) था२ अरणोथी लव देवगतिभा उत्पन्न थाय छे - ( सरागेसजमेण) सराग सयभनु पालन ४२५ १, (सजमासजमेण ) देशविरलिनु पालन ४२५ ०, ( अकामणिज्जराए ) अलाभनिरा ३, ते (बालतनोकम्मेण मास तपस्या४ ] ने सयममा रात्र- यासमित વિદ્યમાન હોય છે તેનુ નામ સરાગ-સયમ છે મતલખ–કષાય સહિત ચારિત્રનુ પાલન કરવુ તે સરાગસયમ છે (૧) ૧૨ ખાર તા-દેશવિરતિ ધારણ કરવા તેનુ નામ સયમાસયમ છે (૨) અભિલાષા-ઇચ્છા વિના ભૂખ આદિ સહન કરવુ તેનુ નામ અકામ નિરા છે (૩) મિથ્યાષ્ટિના તપતુ નામ આલતપ છે (૪) આ કામે કરવાથી જીવ દેવગતિમા જવા યાગ્ય કર્માનુ 1
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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