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________________ १६८ औपपातिकमरे - - णेरइयत्ताए कम्मं पकरेता रहएसु उववजति, तं जहा-महारंभयाए १ महापरिग्गयाए २ पंचिंदियवहेणं ३ कुणिमाहारेणं ४, एवं एएणं अभिलावेणं । तिरिक्खजोणिएसु-१ माइल्लयाए 'णेरइयत्ताए कम्म परेत्ता णेरडएस उवानति' नैरयिकतायै कमागि प्राय अकरेंग विधाय नैरयिकेषु उत्पयन्ते नारकजीमाना मन्ये जायन्ते, तजदा-तद्यया-येन प्रकांग्ण नेरयि केषु जायन्ते तत् कथयति सूरकार -१ 'महारभयाए' महारम्भतया सारयाऽऽरम्भबाहुल्येन,-२ 'महापरिगहयाए' महापरिग्रहतया परिग्रहाविस्येन, ३ 'पचिदियवहेण' पञ्चेन्द्रियवधेन पञ्चेन्द्रियप्राणिना हिंसया, ४ 'कुणिमाहारेण कुणपाहारेण-मामाहारेण, एवं एएणं अभिलावेणं' एवमेतेनाभिलापेन कयनेन 'तिरिक्सजोणिएम'निर्यग्योनिपु-तिरथा योनय = उत्पत्तिस्थानानि तर, १-माइल्लयाए णियडिल्लयाए' मायापितया निकृतिमत्तयामाया परवञ्चना सैपामस्तीति मायाविन तेपा भावरतत्ता तया, निकृति -मायावरणाथ मायान्तरकरण सैपामस्तीति निकृतिमन्त , तद्भावो निकृतिमत्ता तया, २ 'अलियवयणेण' फरते हैं-(त जहा) वे चार कारण ये हैं-(महारभयाए) महा-आरम्भ, (महापरिग्गहयाए) महापरिग्रह, (पचिंदियवहेण) पचेन्द्रिय जीवों का वध करना, (कुणिमाहारेण) मास का आहार करना । इन चार कारणों से (णेरइयत्ताए कम्म पकरेत्ता णेरइएमु उववजति) नरक में ले जाने के योग्य कर्मों का उपार्जन होता है, इसलिये ये जीव नरक में उत्पन्न होते है। (एव एएण अभिलावणं) इसी प्रकारका चार कारण रूप कथन (तिरिक्खजोणिएमु ) तिर्यञ्च गति मे उत्पन्न कराने वाले कर्मों का भी है । वे चार कारण ये हैं-(माइल्लयाए) मायाचारी करना (णियडिल्लयाए) एव माया को मवरण करने के लिये और अधिक मायाचारी करना १, (अलियवयणेण ) असत्य४।२। दास न२४भा नारा भी ४२ छ, (तंजहा) तेयार ४१२९५ मा छ(महारभयान) महामार म, (महापरिग्गयाए) महापरियड, (पचिंदियवहेण) ५२द्रियवानो १५ ४२वा, (कुणिमाहारेण) भामना मा२ ४२३। माया ॥२णोथी (णेरइयत्ताए कम्म पकरेत्ता णेरइएसु उववज्जति) न२४मा सपा याय ४ीनु 60 नयाय छतेथीत बन२४मा लय छे (एव एएण अभिलावण) मारना ४ यार १२९५३५ ४थन (तिरिक्सजोणिएस) नियंन्य गतिमापन सपना। ४ नु पछे तयार ४१२९ मा छे-(माइल्लयाए) मायायारी ४२७, (णियडिल्लयाए) તેમજ માયાનુ સવરણું કરવા માટે-ડ્રાડવા માટે અન્ય માયાચારી કરવું (૧).
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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