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________________ चिणो-टीका स ५- भगवतो धर्मदेशना ૯૪૨ लियाए परिसाए इसिरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अगसयाए अणेगसयवंदाए अणेग सयवंद परिवाराए मह महालिया तस्याथ महातिमहत्या 'परिसाए' परिपत्र = सभाया, 'उसिपरिसाए' रूपपरिषद -- रुपन्ति जानन्ति अवविज्ञानादिनेति रुपय - अतिशयज्ञानयन्त, तेपा परिमत्सभा तस्था, 'मुणिपरिसाए' मुनिपरिपट - मुणन्ति मन्यन्ते वा प्रतिजानन्ति सर्वसावधव्यापारोपरतिम इति मुणयो-मुनयो वा सर्वनिरतिमन्त, तेपा परिषत् तस्या मुणिपरिपटो, मुनिपरिषदो चा, 'जपरिसाए' यतिपरिषद - यतन्ते दशविधयनिधर्मे इति यतय । तथा चोक्तम् एवं यः शुद्धयोगेन, परित्यज्य गृहाश्रमान् । सयमे रमते नित्य स यतिः परिकीर्तितः ॥ १ ॥ के इति तेपा यतीना परिपत- तस्था, 'देवपरिसाए' देवपरिषद -- देवाना = भवनपयादिचतुर्विधदेवाना परिपत् तस्या, 'अणेगसयाए' अनेकशताया -अनेकानि तानि यस्यासानेता तस्या, 'अणेगसयवंदाए' अनेकशतवृन्दाया = अनेकशतानि वृन्दानि समूहायस्या साsनेता तस्या, 'अणेगसयचंद परिवाराए' अनेकशतवृन्दपरिपुत्र कूणिक राजा को, तथा - ( सुभद्दापमुहाण देवीण ) सुभद्राप्रमुख राजरानियों को, (तीसे य ममहालियाए ) तथा उस वडी भारी ( परिसाए ) सभा को, (इसिपरिसाए ) रुपियों-अवधिज्ञान से पदार्थों को जानने वालों की सभा को, (मुणिपरिसाए) मुनियों-सर्वसावध व्यापारों के मन वचन एव काय आदि से त्यागियों की सभा को, ( जइपरिसाए ) गृहाश्रम का परित्याग कर जो मन, वचन, काय के शुद्धयोग से स्यम में अर्थात दश प्रकार के यतिधर्म में नित्य यत्नवान होते हे वे यति है, उनकी सभा को, (देवपरिसाए ) भवनपति आदि चतुर्निकाय के देवों की सभा को, (अणेगसयाए ) _अनेकशतम्ख्यावाली (अणेगसयादा ) अनेकगत वृन्द ( समूह ) वाली ( अणेग ना पुत्र कृषि रामने, तथा-(सुभदापमुहाणं देवीण) सुभद्रा प्रमुख राष्ट्रराशी ओने (तीसे य ममहालियाए) तथा ते गहु भोटी (परिसाए) सलाने, (इसि परिसाए) ऋषियो- अषधिज्ञानथी महाथेने नयुवावाजाभोनी सलाने, (मुणिपरिसाए) भुनियो भर्व सावद्यव्यापारोने भन पयन तेभन डाया साहिथी त्याग ४२नारनी सलाने, (जइपरिसाए) गृहस्थाश्रमना परित्याग उरी के भन, વચન, કાયના શુદ્ધયોગથી સ યમમા અર્થાત્ દશ પ્રકારના તિધમ મા नित्य यत्नवान रखे छे ते यति छेतेन सलाने, (देवपरिसाए) लवनयति माहि यतुनिभयना हेवोनी सलाने, (अणेगसयाए) ने शत (सेो) सभ्या
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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