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________________ રૂર औपपातिक , चाफासे अंजलिपग्गहेणं, (५) मणसो एगत्तभावकरणेण, समणं भगवं महावीरं तिक्खुतो आयाहिणपयाहिणं करेड, करिता वंदs नमसड, वंदित्ता नर्मसित्ता तिविहाए पजुवासणरासग करणेण एकगाटिकोत्तराssसग करणेन - भाषायतनार्थम् अस्यूतेन एकपटन उत्तरासङ्गकरण तेन 3, 'चरसुप्फासे' चक्षु स्पर्धे- श्रीमहावीर दृष्टिमागते, 'अजल्पिग्गहेण' अञ्जलिप्रप्रहेण = कृताञ्जलिपुटेन ४, 'मणसो एगत्तभावकरणेण' मनस एकत्र - भावकरणेन - मनस चित्तस्यैकन = भगवद्विपये भावकरणेन स्थिरीकरणेन, एव पञ्चविधाभिगमेन ‘समण भगर महावीर' श्रमण भगवन्त महावीरम् अभिगम्य, तस्य श्रमणस्य भगवतो महावीरस्थ 'तिवसुतो' नि 'आयाहिणपयाहिण' आदक्षिणप्रदक्षिणम् = अञ्जलिपुट बद्र्ध्या, त नद्राञ्जलिपुट दक्षिणकर्णमूलत आरभ्य ललाटप्रदेशेन वामकर्णान्तिकेन चक्राकार ि परिभ्राम्य ललाटदेशे स्थानरूप, 'करेइ' करोति, 'करिता ' कृवा ' बदइ नमसइ ' वन्दते नमस्यति–स्तौति नमस्करोति, 'बदित्ता नमसित्ता' वन्दित्वा नमस्थित्वा, 'तिविऐसे वस्त्र का उत्तरासङ्ग करना, (चक्सुप्फासे अजलिपग्ग हेण ) जन से भगवान दिखायी ढे, तभा से दोनों हाथों को जोडना, और (मणसो एगत्तभावकरणेण ) मन को एकाप्र करके भगवान म लगाना । इस प्रकार इन पाँच अभिगमनों से युक्त होकर राजाने भगवान् महावीर प्रभु को तान नगर (आया हिणपयाहिण) आदक्षिणप्रदक्षिण-अञ्जलिपुट को दाहिने कान से लेकर गिर पर घुमाते हुए बायें कान तक ले जाकर फिर उसे घुमाते हुए दाहिने कान पर ले जाना और बाद में उसे अपने ललाट पर स्थापन करना-रूप आदक्षिणप्रदक्षिण (करेइ) किया, (करिता) आदक्षिणप्रदक्षिण कर के ( वदइ नमसइ) वन्दना और नमस्कार किया । (वदित्ता नमसित्ता) वन्दना नमस्कार कर के (तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासह) માટે અખ ડ અર્થાત્ જે સીવેલા ન હોય તેવા વસ્રનુ ઉત્તરામ ગ ४२५, (चक्खु फासे अज लिपग्गहेण ) न्यारथी लगवान हेयाय त्यारथी ४ भन्ने हाथने लेडवा, गने (मणसो एगत्तभावकरणेण) भनने मेअथ पुरीने लगवानभा જોડવુ આ પ્રકારે આ પચ અભિગમનાથી યુક્ત થઈને રાજાએ ભગવાન महावीर प्रभुने त्रयु वार ( आयाहिणपयाहिण ) महाक्षसुप्रक्षिशु-मसियुटने જમણા કાનથી લઈને શિર ઉપર ઘુમાવતા ડાખા કાન સુધી લઈ જઈને પા તેને ઘુમાવીને જમણા કાને લઈ જવેા અને પછી તેને પેાતાના કપાળે સ્થાपन ४२वाइप मादक्षिणु-- अहक्षिण (करेइ) ज्यु, (करिता ) महक्षिणु-अदक्षिषु उनीने (दइ नमसइ) वहना भने नभम्र अर्ध्या (वदित्ता नमसित्त) वहना
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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