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________________ ४३० । औपपातिकसने भगवओ महावीरस्स अदूरसामंत छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासड, पासित्ता अभिसेकं हस्थिरयणं ठवेड, ठवित्ता आभिसेकाओहत्थिरयणाओपचोरुहइ,पचोरुहिताअवहट्ट पंच रायकउहाई, तंजहा-खग्गं छत्तं उप्फेसं वाहणाओ वालवीयणि; जेणेव समणे अदूरसमापे-नातिदूरे नातिसमापे, किंचिदरे इत्यर्थ । 'छत्ताईए तित्ययराटसेसे' उनाठिकान् तीर्थकरातिशेपान-तीर्थकगतिगयान् 'पास' पत्यति, 'पासित्ता' दृष्ट्या, 'आभिसेक हत्थिरयण' आभिपेक्य हस्तिरत्नम् 'ठवेइ, ठवित्ता' स्थापयति, स्थापयित्वा, 'आभि सेकाओ हत्थिरयणाओ' आभिपेक्यात् हस्तिरत्नात् 'पचोरुहड' प्रत्यवरोहति अनतरति, 'पचोरुहित्ता' प्रत्यवस्ह्य, 'अवह पच रायकउहाद' अपहत्य पञ्च राजकादानि-त्यक्त्वा पञ्च राजचिहानिराजाऽयमिति जापानि चिह्नानि, 'तजहा' तद्यथा-तानि चिह्नानि यथा-'खम्ग' सगम्, 'छत्त' उत्रम् , 'उप्फेस' मुकुटम् 'उप्फेस' इति च्छइ) निकल कर जहाँ पूर्णभद्र उद्यान या वहाँ आये, (उवागच्छित्ता समणस्स भगः वओ महावीरस्स अदूरसामते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासइ) आकर उन्होंने श्रमण भगवान् महावार के न -अतिसमीप और न अतिदर-किन्तु कुछ-ही-दर-पर-ताथ-- करों के अतिशयस्वरूप छत्रादिकों को देसा, (पासित्ता आभिसेक्क हत्थिरयण ठवेइ) देखते ही उन्होंने अपने हाथी को खडा करवाया, (उवित्ता आभिसेकाओ हस्थिरयणाओं पच्चोरुहद) हाथी के सडे होते ही वे उस हाथी से नाचे उतरे, (पच्चोरुहिता अवहटु पच रायफउहाद) नाचे उतरते ही उन्हों ने इन पाच राजचिह्नों का परित्याग किया, (त जहा) वे पाच राजचिह्न ये हे-(ग्वग्ग छत्त उप्फेस वाहणाओ वालवीयणि) सङ्गGधान हेतु त्या माव्या, (उपगच्छित्ता समणस्स भगरओ महावीरस्स अदूरसा मते छत्ताइए तित्थयराइसेसे पासइ) मापीने तयार भएर लावान भी વિરથી બહુ દૂર નહિ તેમ બહુ સમીપ નહિ, પણ જરા દરે, તીર્થકરોના अतिशय स्व३५ छानिने नया, (पासित्ता आभिसेक्क हत्थिरयण ठवेइ) नेता तमाय पोताना हाथीने मारभाथ्यो, (ठवित्ता आभिसेक्काओ हत्यि रयणाओ पच्चोरहइ) 8था GHो २ ५ तेसत हाथी 6५२थी नीय तर्या, (पच्चोरुहित्ता अवहट्ट पच रायकरहाइ) नीचे उतरीन तमामे पाय शायिनीनो त्याग ४यों (तजहा) ते पाय यिनी ॥ छ-(बग्ग छत्त जफेस वाहणाओ वालवीयणि) म सपार, छत्र, स-भुक
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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