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________________ ११७ पोषषिणो-टीमा सू ५० भगय दर्शनार्थ कुणिकम्य गमनम् लियाए चाउरंगिणीए सेणाए समणुगम्ममाणमग्गे जेणेव पुण्णभद्दे चेडए तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ सू० ५०॥ मूलम्त एणं तस्स कूणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स प्रथितकीर्ति , 'हय-गय-पवर-जोह-कलियाए चाउरगिणीए सेणाए' हयगजरयप्रवरयोधफलितया चतुरगिण्या सेनया-हयगंज स्यै प्रपरयो रथिभिर्महारथिमि कलितया युक्तया, चत्वारि अगानि यस्या मा चतुरद्गिणी तया-यगजर थपदातिरूपैश्चतुर्भिरने ममेतया सेनया 'समणुगम्ममाणमग्गे' समनुगम्यमानमार्ग -समनुगम्यमानो मार्गों यस्य स तथा, 'जेणेव पुण्णभद्दे चेहए' यौन पूर्णभद्र चैय 'तेणेव ' तत्रैव पहारेत्य' प्रधारितवान् 'गमणाए' गमनाय पूर्णभद्रोद्यान गन्तु मनसि निश्चय कृतवान् ।।मू० ५०॥ 'तए ण' इयादि । 'तए ण तस्स कृणियस्स रण्णो भभसारपुत्तस्स पुरओ' तत सल तस्य कूणिकस्य गजो भमसारपुत्रस्य पुरत 'मह' महान्त =उच्चा , 'आसा' अश्वा -तुरट्गमा , 'आसवग' अश्ववरा-जात्या गद्गारेण च वरा =अष्टा अवा समान ऋद्धि के कारण विख्यात कीर्तिपाले ये (इय-गय-पवरजोह-कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए समणुगम्ममाणमग्गे जेणेव पुण्णभद्दे चेहए तेणेव पहारेत्य गमणाए) घोडा, हाथी और श्रेष्ठ योद्वाओं से युक्त चतुरगिणी सेना से युक्त हो जहाँ पूर्णभद्र नामका उद्यान या उस ओर चले । सू ५० ॥ 'तए णं तस्स कृणियस्स रण्णो' इत्यादि । (तए ण) इसके बाद (तस्स ऋणियस्स रण्णो भभसारपुत्तस्स) भभसार के पुन उन कृणिक राजा के (पुरओ) आग आगे (महं आसा) बडे उचे २ घोडे एव (आसवरा) जाति और शृगार से उत्तम घोडे चलने लगे । (उभओ पासिं णागा णाग- । गय-पपरजोह-कलियाए चाउरगिणीए सेणाए समणुगम्ममाणमग्गे जेणेर पुण्णभद्दे चेइए तेणेव पहारेत्य गमणाए) घास, हाथी मन श्रेष्ठ योद्धामाथी युति ચતુર ગિણી સેનાથી યુત થઈ જ્યા પૂર્ણભદ્ર નામનુ ઉદ્યાન હતું તે તરફ यादया (सू ५०) 'तए णं तस्स पूणियस्स रणों' त्याहि (तए ण) त्यार पछी (तस्स कृणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स) समसारना पुत्र ते इणि शनी (पुरओ) मा सामण (मह आसा) या GA! घास तेभर (आसारा) लति तथा शान्थी उत्तम यास न्याला
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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