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________________ Rememe m m पोयूपपणी टोकास ५० मगरदर्शनार्थ कुणिकम्प गमनम् मूलम्त ए णं से कूणिए राया हारोत्थय-सुकयरडय-वच्छे कुंडलउज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए णरसीहे परवई परिंदे णरवसहे मणुथरायवसहकप्पे अमहियं रायतेयलच्छी टीका-तए ण से' इत्यादि । 'तए ण' ततस्तदनन्तरम् अष्टमङ्गलगृहोंग्निहयगजादिनस्थानानन्तर बल्ल 'मे कृगिए राया' स कूगिको राजा 'हारोत्ययमुरुप-स्टय-वच्छे' हागवस्तृत सुकून-रतिट-वक्षा हागवस्तृत हारप्रावृत्त, मुकृत:नुचितम् अतएव रतिदम्-प्रीतिप्रट व हृदयदेशो यस्य स तथा, 'कुडल-उज्जोइयागणे कुण्डलोयोतिताऽऽनन , मुकुटनीगिरक , 'णरसीहे । नरसिंहो, 'गरवई' नरपति , 'गरिंद' नरेन्द्र 'गरवसहे' नरवृषभ - अनीत्तरार्यभारनिहिक यात्। 'मणुय 'तए ण से कृणिए राया' इयादि । (तए ण) इसके बाद (से कृगिए राया) वह कूगिक राजा कि जिनका वक्षस्थल (हारांत्यय-मुकय-राय बच्छे) हागे से ब्यान, सुरचित और रतिद-प्रीतिप्रद या, (कुंडलउन्लोइयाणणे) जिनका मुगकुटलों की आभा से अधिक दामिम्पन्न होरहा था। (मउडत्ति-सिरए) मुकुट धारण करने से जिनका मन्तक मुशोभित हो रहा था । (गरसीह) जो मनुष्यों में मिह जैसे थे । (गरबई) जो मनुष्या क त्वामी थे, क्यों कि हर तरह से उनका पालन-पोषण करते थे। इसीलिये (परिंदे) जो नरा में इन्द्र जैसे थे। (गरवसहे) जो नग में वृपमसमान थे, क्यों कि ये अपने ऊपर जो कार्य लेते थे उसे अपश्यमेव पूग करते थे । (मणुयराय-वसह-कप्पे) मानवा के गजाआ के भी जो राजा-चक्रवती-जैसे 'तए ण से कूणिए राया' पत्यादि (तए ) त्यार पछी (मे कृणिए राया) ते दिड Pinनु १६ - P4 (छtri) (हागेत्यय-सुफय-रइय-बच्छे) हारथी व्यास, सुरथित सने प्रीति तु (कुडल-उज्जोइया-गणे) भनु भुप उनी मालाश पडे पिंड हासिमपन्न 45 छु तु (मउड-दित्त-सिरण) भुट धारण पाथी रेनु भन्न सुशोभित यई तु (णासीहे) 2 मनुष्यामा सिंह पर खता, (गरसह)२ मनुष्याना पामी हता, उभ७२ तडया તેમનુ પાલન-પોષણ કરતા હતા આથી (૯) તેઓ નરેના ઇદ્ર જેવા ont (गरवसहे) २ श्यामा वृषम-समान ना तो पाताना ७५२२ आर्य देता ते सत्यमेव ५३ उता इता (मणुपराय-वसहः me-m--- mera man
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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