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________________ पोयूपयापंणो-टीका सु ४९ भगवदर्शनाथै फूणिकस्य गमनम् ताणं सज्झयाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराणं सणंदिचण' तदन्तरच बलु 'सच्छताण' सन्छनागाछत्रयुक्तानाम् , 'सज्झयाग' सध्वजानाम्अजयुक्तानाम् 'सघटाणे' सघण्टानाम् , 'सपडागाण' सपताकानाम्-ध्वजो गरुडानिचिहयुक्तस्तदन्या तु पताका तद्वताम् . 'सतोरगवराण' सतोरणयराणाम् श्रेष्टतोरणवताम् , 'सणदियोसाण' मनन्दिधोपागाम्-नन्दीद्वादशविधवाद्यनि?प , तद् यथा-१ भभा, २ मउद, ३ मद्दल, ४ कटन, ५ झल्लरि, ६ हुड्डध, ७ फैसाला । ८ काहल, ९ तलिमा, १० वसो, ११ वी, १२ पणवो य वारसमो ॥१॥ तन-भभा' भम्भा भेरी १, 'मउद' मुकुन्द = वायविशेष २, 'मद्दल' मर्दल =मृदङ्ग ३, 'फडर' कडम्य वाद्यविशेष ४, 'झलरि' झञ्जरी-'झालर' इति रयातो वाचविशेप ५, 'हुडुक्क हुडुक वाद्यविशेष , अय देशीय शब्द ६, 'कसाला' कास्माल यावविशेष ७, 'काहल' काहल याद्यविशेष ८, 'तलिमा' तलिमा= तिणिस-कणग-णिज्जुत्त-दारुयाण कालायस-सुरुय-णेमि-जत-कम्माण) इनके वाद आगे आगे १०८ रथ चल रहे थे, ये रय उनसहित ये, पजासहित थे, इनके ऊपर ध्वनाएँ फहरा रही थीं, इनमें घण्टे लटक रहे थे, जिससे चलते समय इनकी मधुर आवाज आती थी। पताकासहित थे। (गरुट आदि के चिह्नों से युक्त का नाम धजा है और चिह्नरहित का नाम पताका हे।) इन रथो पर तोरण बधे हुए थे । ये रथ नन्दिघोप सहित थे । बारह प्रकार के वाद्यों का नाम नदिघोप है, वे १२ बारह प्रकार के बाजे ये है-भमा-भेरी, मउद-मुकुद (यह एक जात का बाजा होता है), मईल-मृदग, कटब-(यह भी एक जात का वाजा होता है), झल्लरी-झालर, हुडुक्क (यह भी एक जात का बाजा विशेष होता है), कसाल-(यह भी एक जातका बाजाविशेप है), काहल-(यह भी एक जात का बाजा विशेष है), तलिमा-वाचविशेप, वा-वाद्यविशेष, शख, एव १२वा पवणणिज्जुत्त-दारयाण कालायस-सुकय-णेमि-जत-कम्माण) त्या२ पछी आपण ૧૦૮ રથ ચાલતા હતા આ રથ છત્રવાળા હતા ધ્વાવાળા હતા તેમના ઉપર ધજા ફરકી રહી હતી તેમાં ઘટ લટકી રહ્યા હતા જેથી ચાલતી વખતે તેમને મધુર અવાજ આવતું હતું પતાકાવાળા હતા (ગરૂડ આદિના ચિહ્નો જેમાં હોય તે ધ્વજા કહેવાય અને જે ચિહ્નવિનાની પતાકા કહેવાય) આ રથ ઉપર તોરણ ખાધેલા હતા ન દિઘોષવા રના વાદ્યો (વાજા)ના નામ ન દિધેય છે તેઓ ૧૨ छे-भभा-लेरी, मउद-भु (मा ४ तनु पाणु हुडुक्क (मा ५ मे भुगतनु पाय छ) कला मा विशेष छे) काहूल-मा ५ ४ मभु४ ong !
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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