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________________ - ३९८ গীকিয়া मणि-कणग-रयण-विमल-महरिह-णिउणो-विय-मिसिमिसत-विरइय-सुसिलिह-विसिह-लह-सठिय-पसत्थ-आविद्ध -वीर-वलए, प्रलम्बमानेन पटेन घरोग मुकृत विन्यस्तम् उत्तरीयम् उत्तरामहवन येन स तथा, 'गाणा-मणि-कणग-रयण-रिमल-महरिह-णिउणो-विय-मिसिमिसन-विरश्यमसिलिट्ठ-विसिटु-ल?-सठिय-पमत्य-आरिद्ध-वीर-बलए' नाना-मगि-कनारन-विमल-महाई-निपुण-परिकर्मित-देदीप्यमान-पिरचित-मुग्लिट-विशिष्ट-रए - स्थित-प्रशस्ता - ऽऽविद्-वीर -- वलय - नानाविधानि माणिकनकरत्नानि = चन्द्रकान्तादिमणि-सुवर्ण-कर्केतनादि-रत्नानि यस्मिन स , अत यय रिमल -निर्मल महाहे = महत्ता योग्यश्च, तथा-निपुणपरकर्मितदेदीप्यमान --निपुणेन=गिन्पकलादसंग शिपिना 'उविय' परिकर्मित =मस्कारमापादित , तन एव 'मिसिमिसंत' देदीप्यमान - दीप्तिसम्पन्नध, पुन -विरचित – मुश्लिष्ट-विशिष्ट-मस्थित -विरचित=निर्मित-मुग्लिष्ट, शोभनसन्धिक विशिष्टम् उत्कृष्टम् लप्ट-मनोहर मस्थित-मस्थानम्-आकारो यस्य स तथा, अत एव-प्रशस्त प्रशसनाय , एतादृश आविद्ध परिभृत वीरवलयो-विजयवलयो येन उत्तरप्तग किया था। (णागा-मणि-कणग-रयण-विमल-महरिह-निउणी-वियमिसमिसत-विरइय-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ लट्ठ-सठिय-पसत्य-आविद्ध-वीरवलये)देठप्यमान तथा निपुग कारीगरों द्वारा सुमस्कारित एव बडे भाग्यशालियों के धारण करने योग्य ऐसे निर्मल अनेक मगिया एव रत्नों से युक्त सुवर्ण के बने हुए वीरवलय का कि जो सुसधि से सान, उत्कृष्ट, मनोहर और सुन्दर आकार से विशिष्ट तथा प्रशसनीय था इनने धारण कर रक्खा था। जिस वलय (कडे) को धारण कर शत्रु पर विजय प्राप्त का जाती है उस वलय का नाम वीरवलय है अथवा-जो इस वलय को धारण करता है वह तु, साथी बनारने मानयता त (पालब पलबमाण पड-सुकय-उत्तरिज्जे) या सामा १२नु तेभारे त्रास (पछेड1) यु तु (णाणा-मणि-कणग रयण विमल महरिह निउगो चिय मिसमिसत-विरइय सुसिलिट्ट विसिद्ध-लट्ट सठिय पसत्य आविद्ध-धीरवलये) हेवीप्यमान मने निपुष्प शग। वारा सुस २४रित, તેમજ ભાગ્યશાળીઓને ધારણ કરવા યોગ્ય એવા નિમળ, અનેક મણિએ તથા રત્નવડે યુક્ત સોનાનું બનાવેલું વીરવલય જે સુસધિથી સંપન્ન, ઉકાઇ, મનહર અને સુંદર આકારથી વિશિષ્ટ તથા પ્રશસનીય હતું તે તેણે ધારણ કર્યું હતુ જે વલય (કડા)ને ધારણ કરવાથી શત્રુ ઉપર વિજય મેળવાય છે તે વલયનું નામ વીરવલય છે અથવા જે આ વલયને ધારણ
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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