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________________ ૨૦૮ औverfras चंपा पायरी सभितरवा हिरिया आसित जाव गंधवट्टिभूया क्या, त णिज्जंतु णं देवाणुप्पिया । समणं भगवं महावीरं अभिवंदिउ ॥ सू० ४७ ॥ मूलम् - तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते वल 'चपायरी सभितरवाहिरिया' चम्पा नगरी साम्यन्तरमाया 'आसित जाव गधवहिभूया कया' आमिक यावद त्यतिभूता ऊता, 'त णिज्नतु ण देवगणुरिया' तन्निर्यान्तु पल देवानुप्रिया समय भगर महावीर अभिरदिउ ' भगात महानीरमभिवन्दितुम् ॥ सू० ४७ ॥ } ' टीका' नए ण 'यादि । 'तए ण' ततमेनापतिनिवेदनानन्तर खल 靠 से कणिए राया ममसारपुत्ते ' म ऋणिको गजा भभसारपुत्र 'लवायम्स अतिए ' बलत्र्यापृतस्याऽन्तिक= बल यातमुपात 'एयम' एतमर्थ ' भरदाजानुसारेण सर्व सम्पा है । (चपा पयरी सभितरवाहिरिया आमित्त जाव या कया) तथा पानी से अच्छी तरह scareर साफ करा दी गई है। उसमे जल भी छिडकचा दिया गया है, यावत् यह सुमित जैसी बन चुकी है, ( त देवाणुपिया) अत ह देनानुप्रिय ' ( समण भगव महावीर अभिवदिउं णिज्जतु ) अब आप श्रमण भगान महान को ना करने के लिये पधारे ॥ मू० ४७ ॥ 'तरण से णि राया भभसारपुते यात | (तएण ) इसके (सारपुत्ते मे कणिए राया) भमसार अथात श्रेणिक के पुत्र कृणिक राजा (स्स) मेनापति के मुस मे ( एयमहं सोचा ) हाथा आदि का નથા ચ પાનગરી પણ અંદર-બહારથી માર્ગ રીતે વાળીઝૂડી સાફ કરાવી દીધી છે તેમા પાણી પણ છટાળ્યુ છે જેવી તે સુગધિત દ્રવ્ય જેવી ખની (पिया) भाटे हे देवानुप्रिय ! (समण भगव महावीर अभिवंदि भिज्जतु ) रुपे आप श्रम लगवान महावीरने चहना वा મારૂ ધાર (भू ४७ ) 'ar मे कणिए राया भारते' त्याहि (तर पण त्यार पछी ( भभसारपुत्ते मे कूणित रया) ल लभार अर्थात् श्रेलिना पुत्र धि रा ( पायस्स) सेनापतिना मुभथी [ण्यमट्ठ सोन्चा] साथी
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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