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________________ यूपवर्षिणो-दोका सू ४५ वव्यापृतस्य नगररक्षक प्रत्यादेश ३८३ आमंतित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया चंप णयरिं सभितरवाहिरियं आसित्त जाव कारवेत्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणाहि ॥ सू० ४५॥ 'णयरगुत्तिय' नगरगुत्तिक-नगग्गोमाग्म् 'आमतेड' आमन्त्रयति-आयति,-'आमतित्ता 'एक बयासी' आमन्त्र्यैवमयादीत 'विप्पामेव भो देवाणुप्पिया' तिग्रमेव भो देवानुप्रिय । 'चप णयरिं' चम्पा नगरा ‘सभितरवाहिरिय' साभ्यन्तरवाद्याम् 'आसित्त जाव कारवेत्ता' आमिक्तशुचिसमष्टर यान्तरापगीथिका यावद्गन्धवर्निभूता कुरु, कारय, कृपा, कारयित्वा 'एयमागत्तिय' एतामाजमिका 'पञ्चप्पिणाहि' प्रत्यर्पय ।। सू०४५॥ करनपाले कोटवाल को (आमतेइ) बुलाया,और (आमतित्ता) बुलाकर (एवं पयासी) इस प्रकार कहा-(पिप्पामेव भो देवाणुपिया) हे देवानुप्रिय ' तुम गीत्र ही (चप णयरि) इस चपा नगगकी (सभितरवाहिरिय)भीतर बाहिर से सफाद गओ। पाना से इसमे छिडकाव कराओ। जगह २ इसे पानी से धुलगाओ। कहा भी कृटा-करकट का नाम न मिले, इस तरह से स। सफाई हो जानी चाहिये । प्रयेक गला एप बाजारों के मार्ग सब बहुत ही अच्छी तरह से साफसूफ किये जाये। जगह २ सुगधित जल का, गोरोचन का एव सरस लाल चदन का छिडकाव हो, जिससे यह नगरी मुगपित द्रव्य जैसी बन जावे। तुम से यही कहना है, जाओ और इस आदेश की शान से शीत्र पूति करो और उन कामों को पूरा कर के मुझे शीघ्र सूचित करो ॥ सू० ४५ ॥ २क्षा ४२वाटपालने (आमतेइ) मासाच्या मने (आमतित्ता) लावीन (एव वयासी) मा प्रकारे उछु (खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया) हेवानुप्रिय ! तभे सहीथी (चप णयरि) मा य पानगशनी (सन्भितरबाहिरिय) म १२ तथा બહારથી સફાઈ કરવો, તેમાં પાણીને છ ટકાવ કરાવે, ઠેક-ઠેકાણે તેને પાણીથી ધોવરાવ કયાય પણ ફડાકરટનું નામ ન રહે એમ તેની સફાઈ થવી જોઈએ પ્રત્યેક ગલી તેમજ બજારના રસ્તા ખૂબ જ સારી રીતે સાફસૂફ કરવા છેકઠેકાણે સુગ ધિત જલને, ગોગ-સુખડને તેમજ સરસ રક્ત ચંદનને છ ટકાવ હોય, જેથી આ નગી સુગ ધિત ચીજ જેવી બની જાય તમને એજ કહેવાનું છે જાઓ અને આદેશાને જરી પૂર્ણ કરો અને તે કામે પૂરા કરીને મને જરરી ખબર કરે (સૂ૦ ૪૫)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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