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________________ वर्षिणो-डीका ख ४५ चरुव्यापृतस्य नगररक्षक प्रत्यादेश' ૮૨ आमंतित्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुपिया | चंप णयरिं सन्भितरवाहिरियं आसित जाव कारवेत्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणाहि ॥ सू० ४५ ॥ भो 'यरगुत्तिय' नगरगुत्तिक= नगरगोमारम् 'आमतेड ' आमन्त्रयति - आयति, - 'आमतित्ता ' एव वयासी ' आमन्त्र्यै मराठीत् 'विप्पामेव भो देवाणुपिया ' प्रिमेव भो देवानुप्रिय " 'चप यरिं' चम्पा नगरा ' सभितरवाहिरिय ' साभ्यन्तरबायाम् ' आसित्त जात्र कारवेत्ता' आसिक शुचितमुष्टय्यान्तरापणवीथिका यावद्गन्ध वर्निभूता कुरु, कारय, कृना, कारयित्वा 'एयमागत्तिय ' एतामाज्ञमिका 'पच्चष्पिणाहि' प्रत्यर्पय ॥ सू०४५ ॥ करन वाले कोटनाल को (आमतेइ) बुलाया, और (आमतित्ता) बुलाकर ( एवं नयासी) इस प्रकार कहा - (विपामेव भी देवाणुपिया) ह देवानुप्रिय ' तुम गात्र ही (चप णयरि) इस चपा नग की (सभितरवाहिरिय) भातर बाहिर से सफाइ कराओ। पाना से इसमे डिडकान कराओ । जग - २ इसे पानी से चुलवाओ। कहा भी कूडा-करकट का नाम न मिले, इस तरह से इस+1 सफाई हो जाना चाहिये । प्रत्येक गल्ली एन बाजारा के मार्ग सब बहुत ही अच्छा तरह से साफसूफ किये जाये। जगह २ सुगधित जल का, गोरोचन का एव सरस लाल चंदन का छिडकाव हो, जिससे यह नगरो सुगणित इत्य जैसी बन जावे । तुम से यही कहना है, जाओ और इस आदेश की शीन से शीन पूर्ति करो और उन कामों को पूरा कर के मुझे गीन सूचित करो || सू० ४५ ॥ रक्षा उखाणा भेटवासने (आमतेइ ) मोलाच्या अने ( आमतित्ता) मोसावीने ( एव वयासी) मा प्रहारे उछु (खिपामेव भो देवाणुप्पिया ) हे हेवानुप्रिय ! तभे सहीथी (चप णयरिं) या यनगरीनी ( सभितरबाहिरिय ) शहर तथा મહારથી સફાઈ કરાવેા, તેમા પાણીને छटाव हरायो, ठे-ठाणे તેને પાણીથી ધાવરાવા કયાય પણ ક઼ડા રટનું નામ ન રહે એમ તેની સફાઈ થવી જોઇએ પ્રત્યેક ગલી તેમજ બજારના રસ્તા ખ઼ુબજ સારી રીતે સાસૂર કરવા ઠેકાણે સુગધિત જલને, ગાગી-સુખડના તેમજ સરસ રકત ચદનના છટકાવ હેાય, જેથી આ નગરી સુગધિત ચીજ જેવી ખની જાય તમને એજ કહેવાનુ છે જાએ અને અદેરાડે જલ્દી પૂર્ણ કરે અને તે કામે પૂરા કરીને મને જલ્દી ખબર કરેા (સ્૦ ૪૫)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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