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________________ memendon থামিষ समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करिता वदति णमस्तंति, वंदित्ता णमस्सित्ता णञ्चासण्णे णाइदूरे सुम्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा। त्रिणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति ॥ सू० ३८॥ पचोरहति' यानवाहनेभ्य प्रयवरोहन्ति-अवस्तादयतरन्ति, 'पचोहित्ता' प्रयवरय, 'जेणेव समणे भगव महावीरे' यव श्रमणो भगवान महावीर [विराजते] 'तेणे उवागच्छन्ति, उबागच्छित्ता' तत्रैवोपागच्छन्ति, उपाग य 'समण भगवं महागीरं तिक्खुतो आयाहिणं पयाहिणं करेंति' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य त्रिकृच आदक्षिण प्रदक्षिण कुर्वन्ति--रिवारमादक्षिगप्रदक्षिण कुर्वन्ति, 'करित्ता' वा 'वंदति' बन्दन्ते-स्तुपति, 'मसति' नमस्यन्ति-प्रणमन्ति, 'वंदित्ता णमस्सित्ता' वन्दिया नमस्यि वा 'णचासणे माइरे' नात्यासन्ने नातिदूरे 'मुस्सुसमाणा' शुश्रूपमाणा 'गमसमाणा' नमस्यन्त 'अभिमुहा' अभिमुसा समुसा , 'विगएणं पंजलिउडा' विनयेन प्राञ्जलिपुटा -पिनय-- विनम्रबद्वाञ्जलय , 'पज्जुरासति' पर्युपासते-उपासना कुर्वन्ति ।। सू०३८ ।। दिये, (ठवित्ता जाणवाहणहितो पचोरुहति) जब वे अच्छी तरह रक चुके तब वे सबके सन अपने २ वाहनों से नाचे उतरे, (पचोरुहिता जेणेव समणे भगव महावीर नेणेव उवागच्छति) उतर कर फिर वे सब लोग जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे वहाँ पहुँचे, (उधागच्छित्तासमण भगव महावीर तिक्खुत्तोआयाहिण पयाहिणकर ति) बाद उन्होंने भगवान् महावीर को तानबार हाथ जोडकर प्रदक्षिणा की, (करित्ता) प्रदक्षिणा घोताना, या त्या जी, या, (ठवित्ता जाणवाहणेहितो पचोरु हानि) क्यारे ते ..मारी, शत १ गया सारे मा पातपाताना पानामाथी नीय - Gl, ,(पच्चोरुहित्ता जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव ति) तीन ५०- REAL श्रम भगवान महावीर मिश भान ता त्या पक्षाच्या (मानच्छिता ममण भगव महागीर तिम्खुत्तो आया हिण पयाहिण करेंति), ६ तेमाणे लगवान महावीरने जापार थान प्रक्षिा से (करित्ता) प्रक्षिा 1 सीबा पी जीते..... ...
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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