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________________ पीयूषषपिणो-टीका सू ३७ वैमानिकदेवघर्णनम् ३४५ धारी कुंडल-उज्जोविया - णणा मउड- दित्त- सिरया रत्ताभा परम-पम्हनि येषा ते तथा । तभो वृषभ, मृगमहिषादिचिह्नयुक्त मुकुटमहिता 'पसिडिएवर -मउड-तिरीड धारी ' प्रशिथिल वरकेशविन्यास - किरीटधारिण, प्रशिथिला ये ' वरमउड' वरकेशविन्यासा =प्रशस्तकेशविन्यासा किरीटाच तान् धरन्ति ये ते तथा, 'मउड' इति केशविन्यासार्थका देशांशन्द । 'कुडल उनोविया गणा ' कुण्डलो दयोतिता-नना - कुण्डन उयोतित = प्रकाशितम् आनन = मुस येपा ते तथा, कुण्डलोद्भामितमुखा इयर्थ । 'मउड- दित्त- सिरया' मुकुट-दीप-गिराजा मुकुदन रन खचितेन दीना गिर जा केशा येषा ते तथा, 'रत्ताभा' रक्ताऽऽभा = अरुणकान्तिमन्त | 'पउम-पम्ह-गोरा' हय घोडा, गजपति गजेन्द्र, भुजग-सर्प, सग और वृषभ इनके चिह्न थे । ( पसिटिलवर - मउड - तिरीड - पारी) प्रशिथिल उत्तम मउड = केशविन्यास एवं किरीट-मुकुट को ये धारण किये हुए थे, अर्थात् भगवान् के दर्शन करते की वग में इनके प्रगस्त के - विन्यास और मुकुट शिथिल हो गये थे । ( कुडल - उज्जोविया - गणा ) कुडलों की विशिष्ट आभा से इनका मुग्वमण्डल प्रकाशित हो रहा था । ( मउड - दित्त - सिरया ) = (१) ये चिह्न १० है, देवलोक १२ हैं । पर इनके इन्द्र १० है - (१) सौधर्मका इन्द्र, (२) ईशानका इन्द्र, (३) सन कुमारका इन्द्र, (४) माहेन्द्र का इन्द्र, (५) ब्रह्मलोक का इन्द्र, (६) लन्तिकका इन्द्र, (७) महाशुकका इन्द्र, (८) सहस्रारका इन्द्र, (९) आनत एव प्राणतका इन्द्र और (१०) आरण एव अच्युत देवलोकका इन्द्र, इस प्रकार ये १० इन्द्र इन १२ कल्पों के है । इन इन्द्रों के ये क्रमश पालकादिक १० विमान होते है । मृग महिप आदिके क्रमश ये १० चिह्न मुकुटों में इनके होते है । पति [हाथी], लुग-मर्थ, अड्ग भने वृषल [जजह], सेना चिह्न हता (पसिढिल - वर-मउड - तिरोड - धारी) अशिथिस उत्तम भउ- देशविन्याम शेव કિરીટ-મુકુટ તેમણે ધારણ કર્યા હતા અર્થાત્ ભગવાનના દર્શન કરવાની ઉતાવળમા તેમના પ્રશમ્ત ફેશ-વિન્યામ અને મુકુટ શિથિલ થઈ ગયા હતા (कुडल-उज्जोनिया-गणा) उबोनी विशिष्ट खाला (प्राश) थी तेभना भु (१) मा चिह्न १० छे, हेवा १२ छे, पशु तेना द्र १० (१) सौधर्मना धद्र, (२) ईशाननो द्र, (3) सनत्कुमारनो द्र, (४) माहेन्द्रनो द्र, (घ) श्रह्मबोनो छद्र, (६) सातजना द्र, (७) महाशुनो धद्र, (८) सहसारना घट्ट, (E) भानत शेव प्रायुतनो छ, तथा (१०) भाग शेव अभ्युत देवसेना ઈંદ્ર આ પ્રકારે આ ૧૦ ઇટ્ટ આ ૧૨ પેાના હૈ. આ ઇટ્ટોના ક્રમથી પાલડ
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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