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________________ पोषवषिणो-ठीका स ३७ ज्योतिष्कदेययर्णनम् ३४३ अच्चुयवई पहिहा देवा जिण-दंसगु-स्सुया-गमण-जणिय-हासा पालग-पुप्फग-सोमणस-सिरिवच्छ-णंदियावत्त-कामगम-पीडगमसौधर्मादयच्युताऽन्ता कन्पा सन्ति, एपुचमानिका देवा भवन्ति, अत व सौपाट्यच्युतान्ताना देवलोकाना पतय =स्वामिन 'पहिट्ठा' प्रहाटा =अतिहर्ष प्रामा देवा -पैमानिका । 'जिणदसणु-स्मया-गमण-जणिय-हासा' जिन-दर्शनोसुका-ऽऽगमन-जनित-हामा -जिनदर्शनाथोंयुकानाम् एपा, देवानामागमन, तेन जनिनो हास =आनन्दो येपा ते तथा । जिनेन्द्रदर्शनाकण्ठागमननातप्रमोदा । सौधर्मादिद्वादशाबाना दालयका इन्द्रा सन्नि, तत्र नामदशमयोरेक इन्द्रो भवति । गादीनामच्युतान्ताना दगानामिन्द्राणा पालकादीनि मर्वतोभदान्तानि दश विमानानि भवन्ति, तान्याह-'पालग १, पुष्फग २, सोमणस ३, सिरिवन्छ ४, णदियावत्त ५, कामगम ६, पीइगम ७, मणोगम ८, विमल ९, सबओभद्द १० -सरिसणामधेग्जेहि विमाणेहिं ओइण्णा' पालक-पुष्पक-मौमनस-श्रीनस-नन्द्यावर्त-कामगम-प्रीतिगम-मनोगम-विमल-सर्वतोभद्र-सदृशनामधेयैर्तिमानैरवतीणा से दश इन्द्रा पालमहाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत ये देवलोक है। ये सौधर्मादिक, वैमानिक देवताओं के रहने के स्थान है। ये देवलोक १२ है। इनकी कल्प सजा है। ये वैमानिक देव इनके पति है । इन कन्पा में जो उपन्न होते हे वे वैमानिक या कल्पवासी देव कहलाते है । (पहिट्ठा) अतिहर्ष को प्राप्त हुए (देवा) ये वैमानिक देवेन्द्र कि जिन्हे (जिण-दसणु-स्सुया-गमण-जनिय-हासा) जिनेन्द्र के दर्शन के लिये उसुकतापूर्वक आगमन से अति आनद हुआ है। (पालग-पुप्फग-सोमणस सिरिवन्छगदियावत्त कामगम-पीइगम-मणोगम-विमन-सन्चओभद्द-सरिस-णामधेन्जेहि विमाणेहिं) घे दस वैमानिक देवेन्द्र अपने २ पालक, १ पुष्पक २ सौमनस, ३ श्रीवत्स, ६, भला ४ ७, सरसार ८, मानत ६, प्रात १०, सा२५ ११, भने અયુત ૧૨, આ દેવક છે આ સૌધર્માદિક, વૈમાનિક દેવતાઓના રહે વાના સ્થાન છે તે દેવલોક ૧૨ છે તેમની કલ્પ સત્તા છે તેમના સ્વામી ૧૦ છે આ કપમા જે ઉત્પન્ન થાય છે તે વૈમાનિક અથવા ૯૫વામી દેવ ४४ाय छ (पहिवा) गहु प्राप्त थता (दवा) ॥ भानि वे उन (जिण-दसणु-सुया-मण-जनिय-हासा) जिनेन्द्रना इशन भाट सुस्ता५४ भागभनयी अति मान ल्येो छ (पालग-पुप्फग-सोमणम-सिरिपच्छ-दियापत्त-कागगम-पीहगम-विमल-सव्वओभद्द-सरिसणामधेजेहिं निमाणेर्हि) ते ६०
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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