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________________ पीयूषयपिणी-टीका सु ३० ध्यानभेदयणनम णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णताओ: तं जहा-अवायाणुप्पेहा १ असुभाणुप्पेहा २ अणंतवत्तियाणुप्पेहा ३ विपरिणामाणुप्पेहा से तं झाणे॥सु० ३०॥ खलु ध्यानस्य चतस्रोऽनुप्रेक्षा प्रजमा , ' त जहा' तद्यथा-' अवायाणुप्पेहा' अपायानुप्रेभा-अपायाना प्राणातिपातायावरद्वारजनितानाम् अनर्थानामनुचिन्तनम् ॥१॥'अमुभा. गुप्पेहा' अशुभानुप्रेभा-मसारस्यैव अशुभस्वरूपतयाऽनुचिन्तनम् ॥२॥'अणतवत्तियाणुप्पेहा' अनन्तवृत्तिताऽनुप्रेक्षा-अनन्तवृत्तिता तैलिकचकयोजितस्य वृपस्य मार्गाऽनवसानवत्कदाप्यसमामिगीलता तस्या अनुप्रेक्षा-अनुचिन्तनम् ॥३॥ 'विपरिणामाणुप्पेहा' विपरिणामानुप्रेक्षाउत्पादव्ययधौन्यस्वभावाना पार्थाना यो विपरिणाम -प्रतिक्षण नवनवपर्यायरूप तस्यानु चिन्तनम् ॥४॥ ' से त झाणे' तदेतद् ध्यानम् ॥ मू० ३०॥ अपायों का अर्थात् प्रागातिपातादिक पाप, जो कर्मों के आस्रव के लिये द्वार जैसे है उनसे जनित अनर्थो का यारमार विचार करना सो अपायानुप्रेक्षा है १। (अमुभाणुप्पेहा) अशुभानुप्रेक्षा-ससार स्वय अशुभस्वरूप है, ऐसा वाग्वार विचार करना सो अशुभानुप्रेक्षा है २ । (अणतवत्तियाणुप्पेहा) अनन्तवत्तितानुप्रेक्षा-भवपरपग की अनतवृत्ति का विचार करना, अर्थात् जिस प्रकार तेली का थैल कोल्ह मे जोता जाने पर चकर काटता है उसी प्रकार इस जीन के भी, जबतक यह मसार मे रहता है तबतक इसके भ्रमण की कभी भी समाप्ति नहीं होती है, इस प्रकार का अनुचिन्तन करना अनतवर्तितानुप्रेक्षा है ३। (विपरिणामाणुप्पेहा) विपरिणामानुप्रेक्षा-प्रयेक द्रव्य, उ पाद, व्यय एव ध्रौव्य स्वभाववाले है, अत वस्तु प्रतिसमय અપાયાનુપ્રેક્ષા–અપાને અર્થાત-પ્રાણાતિપાતાદિઠ પાપ જે કર્મોના આસવને માટે ઠાર જેવા છે તેમનાથી થતા અનર્થોને વાર વાર વિચાર કરે તે मायानुप्रेक्षा छ (असुभाणुप्पेहा) सशुलानुप्रेक्षा-ससा२ पाते गशुल२१३५ छ, सो वारपार विचार वो त पशुमानुप्रेक्षा छ (अणतरत्तियाणुप्पेहा) અન તવર્તાિતાનુપ્રેક્ષા–ભવપર પરાની અને તવૃત્તિતાને વિચાર કરે, અર્થાત્ જેવી રીતે ઘાચીને બળદ ઘાણીમાં જોડાઈને ચકકર-(આઠ) ફર્યા કરે છે એવી રીતે આ જીવ પણ જ્યા સુધી સવારમાં રહે છે ત્યા સુધી તેના શ્રમ ણની કદી પણ સમાપ્તિ થતી નથી, એ પ્રકારનું અનુચિતન કરવું તે અન ત पतितानुप्रेक्षा छ (विपरिणामाणु पहा) विपरिभानुप्रेक्षा-प्रत्ये४ द्रव्य ઉત્પાદ, વ્યય તેમજ પ્રૌવ્ય સ્વભાવવાળા છે, તેથી હરવખત વતુ પરિણમન
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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