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________________ २६३ पीयूपवपिणी-टोका सू ३० यिनयभेदयर्णनम १२, ओहिणाणस्स १३, मणपजवणाणस्स १४, केवलणाणस्स १५, एएसिं चेव भत्तिवहमाणे ३०, एएसिं चेव वण्णसंजलणया ४५, से तं अणच्चासायणाविणए। से किं तं चरित्तविणए ?, भोहिणाणस्म' अवधिज्ञानस्य ।१३। 'मणपनाणाणस्स' मन पर्यपज्ञानस्य ॥१४॥ 'केवग्णाणम्स' केवलनानम्य ।१५। 'एएसि चे भत्तिबहुमाणे' एतेषाञ्चैव भक्तिबहुमानम्-मक्तियुक्त बहुमानम् 'अरहताण' दन्यारभ्य 'केवलणाणम्स' इति-पर्यन्तानामनयाशातनता पञ्चद्गविधा, पुनश्तेपामेव अदादीना भक्तिबहुमानयोगे त्रिंगद्विधचम् । पुन -'एएसि चेव वण्णसजल्णया' एतेषामेव वर्णमचलनता-सद्भूतगुगोत्कीर्तनता, अत्रेद वोध्यम्--अन यागातनाविनयो हि पञ्चच वारिंगद्विध प्रोक्त , तत्र--अर्हदादिग्निया पञ्चदश, अर्हदादिभक्तिनहुमानानि पञ्चदा, अहंदादीना वर्णन नलनताच पञ्चदश, तदित्यमन याशातनाविनय पञ्चचत्वारिंगविध इति । उपमहन्नाह-'से त अगचासायणाविणए' स एपोs नयागातनापिनय । इति । ' से किं त चरित्तविणए ?' अथ कोसौ चारित्र(१२), (ओहिणाणस्स) अविधिज्ञान का (१३), (मणपनवणाणस्स) मन पर्यवज्ञान का (१४) और (केरलणाणस्स) केवलनान का अवर्णवाद नहा करना (१५)। (एएर्सि चेव भत्तिपमाणे) तथा इन्हीं पन्द्रह भेदा का भक्तिपूर्वक बहुमान करना । इस प्रकार इन पन्द्रह भेदों को भक्तिनहुमान क माथ द्विगुगित करने से तास भेद हो जाते है। पुन (एएसिं चेव वण्णसजलणया)दन्हा के सद्भुत गुणों का उकीर्तन करना । इस तरह तीस में पन्द्रह वर्णज्वलनता मिलाने से पैतालास भेद अनयागातनाविनय के होते है। इस प्रकार (से त अणच्चासायणाविणए) यह सन अनत्यागातनाविनय है । प्रभ-( से कि त चरित्तविणए ) चारित्रविनय कितने प्रकार का है ? उत्तर-(चरित्त(१०), (ओहिणाणस्स) मधिज्ञानना (13), (मणपज्जवणाणस्स) मन पर्यवज्ञानना (१४), मने (केवलणाणस्स) सशाननी अq वाहन मास (१५) (एएसिं चेव - भत्तियहुमाणे) तथा 200१ ५४२ प्राशनु मस्तिपूर्व हुमान ४२५१ से अरे પદર પ્રકારના ભક્તિબહુમાનની સાથે બમણ કરવાથી તીસ પ્રકાર થઈ नय छ qणी (एएसि चे वण्णसजलणया) तमना समृत गुणानु जीर्तन કરવું એ રીતે તીસ મા પદર વર્ણસ જવલનતા મેળવવાથી પિતાલીસ પ્રકાર मनत्यानापिनयना थाय छ (से त अणचासायणारिणए) २॥ मारे से या मनत्यागातनाविनय छ प्रश्न-(से कि त चरित्तविणए) यशस्त्रिविनय-टमा प्रा२ने ? उत्तर-(चरित्तविणरा पचविहे पण्णन्ते) यास्त्रिविनय पाय टारना
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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