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________________ ८२०८ ओपपातिकमरे -से तं इत्तरिए। से किं तं आवकहिए 'आवकहिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पाओवगमणे य १ भत्तपञ्चक्खाणे य से किं तं पाओकथा-' मनुष्योऽयम्' एतद्रूपा सा यानकथा, तन भन याव कथिकम्-यावजीवनमित्यर्थ , तद् 'दुविहे पण्णत्ते' द्विविध प्रज्ञप्तम् । 'त जहा' तद्यथा-'पाओवगमणे य भत्तच्चक्खाणे य' पादपोपगमनं च भक्तप्रत्यारयान च, तर-पादपस्येव वृक्षस्येवोपगमनम्अस्पन्दतया-निश्चलतयाऽस्थान पादपोपगमनम्-चतुर्विधाऽऽहारपरित्यागेन शरीरप्रतिक्रियापर्जनेन च वृक्षवनिश्चलावस्थानमित्यर्थ । 'से कि त पाओगमणे-अय किन्तत्पादपोपगमनम् ?-पादपोपगमन कीदृशम् । अनाह-'पाओगमणे दुरिहे पण्णत्ते' पादपोप्रकार का उसके-तप करने वाले के साथ व्यवहार चलता रहे तबतक जो व्रत किया जाय वह यावकथिक है-जीवनपर्यन्त आराधित अनगन व्रत यावत्कयिक है । ( से कि त आवकहिए ?) यावत्कथिक तप कितने प्रकार का है ? उत्तर-(आवकहिए दुविहे पण्णत्ते ) यह तप दो प्रकार का है-( त जहा) वह इस प्रकारसे (पाओवगमणे य भत्तपच्च खाणे य) पादपोपगमन और दूसरा भक्तप्रत्यारयान । जिसमे कटे वृक्ष की तरह निश्चल हो कर स्थिति रहे वह पादपोपगमन है-चारो प्रकार के आहार के परित्याग से एव शरीर की शुभषा आदि क्रियाओं के परित्याग से कट वृक्ष की तरह निश्चल हो जाना इसका नाम पादपोपगमन है। (से किं तं पाओवगमणे') पादपोपगमन कितने प्रकार का है ?, (पाओवगमणे दुविहे पण्णत्ते )यह पादपोपगमन स्थारा दो प्रकार का है, ( त जहा ) वह इस થિકની મતલબ છે, જ્યા સુધી “ આ મનુષ્ય છે” એ પ્રકારને તેના–તપ કરનારના સાથે વ્યવહાર ચાલતો રહે ત્યા સુધી જે વ્રત કરવામાં આવે તે यापथि छे-अपनपर्यत माराधित मनशन प्रत याथि४ छ (से कि त आवकहिए ) या४थि४ त टसा १४॥२॥ छ ? उत्तर ( आवकहिए दुविहे पण्णत्ते) २ त५ मे २नु छ ( त जहा) ते 20 अरे छ (पाओर गमणे य भत्तपन्चक्साणे य) (१) पायाभन भने यीgairal પ્યાન જેમાં કાપેલા વૃક્ષની પેઠે નિશ્ચલ જેવી સ્થિતિ રહે તે પાદપપગમન છે. ચારેય પ્રકારના આહારને ત્યાગ કરીને તેમજ શરીરની સેવા-સુશ્રષા આદિ ક્રિયાઓના ત્યાગ કરીને કાપેલા વૃક્ષની પેઠે નિશ્ચય થઈ જવું તે नाभ पाहपापगमन छ (से कि त पाओगमणे?) पाहापगमन सारना १ (पाओगमणे दुविहे पण्णत्ते) मा पापारामन मयारा में जाना
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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