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________________ २०६ औपपातिक जहा-इत्तरिए य १ आवकहिए य । से किं तं इत्तरिए ? इत्तरिए अणेगविहे पण्णते, तं जहा-चउत्थभत्ते १ छहभते २ अट्टमभत्ते रिक च-एतिष्ठति तच्छीरम् त्वर, तदेव-गरिकम्-अपारिकम्, यथा श्रीमहावीरस्वामिनस्तीर्य नमस्कारसहितप्रया यानकालादारग परमामाय-तम्, श्रीनामेयनीर्थदरतीर्थ रवसरपर्यन्तम्-उति १ । 'आयफहिए य' याव कयिका-मायत्--यदवधिर्मनुष्योsयमिति मुरयव्यवहाररूपा कथा या कथा, तर भर गार कयिक-जीवनपर्यन्तग अनगनमिति । अनयोरित्वरिक पृच्छति-से कि त इत्तरिए' अथ कितद इन्वरिकम् , अभ्योत्तरमाह'इत्तरिए अणेगविहे पण्णत्ते' इन्चरिकम् अनकविध प्रजपम्, 'त जहां-तद्यथा-तानि यद्रपाणि सन्ति तथा कथयति-'चउत्थभत्ते चतुर्थभक्तम्-एकोपरामरूपम१ । 'छद्रमत्त' पष्टमक्तम्-निरन्तरदिनद्वयोपवासरूपम् २ । 'अट्ठमभत्ते' अष्टमभक्त-निरन्तरदिनत्योपपासम्मस्वामी के तीर्थ मे इत्वरिक तप नमस्कारसहित नौकारसी प्रत्यारयान काल से लेकर उह मासपर्यन्त का कहा गया है। श्री आदिनाथ तीर्थफर के शासनमे इसकी मर्यादा नौकारसी से लेकर एकवर्ष पर्यन्त की थी। शेष २२ तार्थकरों के शासनमें अष्टमास पर्यन्त इसकी अवधि थी । (से कि त इत्तरिए १) टत्वरिक तप क्या है। उत्तर-(इत्तरिए अणेगविहे पण्णत्ते ) यह इत्वरिक तप अनेक प्रकार का कहा गया है, (त जहा) वे प्रकार ये है(चउत्थभत्ते छठभत्ते अट्ठमभत्ते दसमभत्ते वारसभत्ते चउदसभत्ते सोलसभत्ते अद्धमासियभत्ते मासियभत्ते दोमासियभत्ते तेमासियभत्ते चउमासियभत्ते पचमासियभत्ते छम्मासियभत्ते) चतुर्थभक्त-एक उपवास, पष्ठभक्त-दो उपवास-निरन्तर-लगातार-दो दिन का उपवास, अष्टमभक्त-निरन्तर तीन दिन तक उपनास, दशमभक्त चार-उपवास-लगातार સ્વામીને તીર્થમા ઈત્વરિક તપ નમસ્કારસહિત–નૌકારની પ્રત્યાખ્યાનકાલથી લઈને છ માસ સુધીનુ કહેવુ છે શ્રી આદિનાથ તીર્થ કરના સમયે તીર્થમાં તેની મર્યાદા નૌકારીથી લઈને એક વર્ષ સુધીની હતી બાકીના ૨૨ તીર્થ - शना तीर्थभा ८ मास सुधानी तनी अवधि ती (से किं तं इत्तरिए? ) प२ि४ त५ छ ? उत्तर-( इत्तरिए अणेगरिहे पण्णत्ते) मा परि तप मन ४२नु दु छ, (तजहा) तमाम छ (चउत्थभत्ते दुभत्ते अदम भत्ते दसमभत्ते पारसभत्ते चउद्दसभत्ते सोलसभने अद्वमासियभत्ते मासियमभत्ते दोमासियभत्ते तेमासियमभत्ते पउमासियमभत्ते पचमासियभत्ते छम्मासियभत्ते। ચત-ભક્ત એક ઉપવાસ, ષષ્ઠભક્ત-બે ઉપવાસ-નિરન્તર–લગાતાર બે દિવસ સના ઉપવાસ, અષ્ટમભક્ત-એક સાથે ત્રણદિવસ ઉપવાસ-ત્રણ ઉપવાસ, દશમ
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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