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________________ - - -mra १९४ औपपातिकको अणिलो इव निरालया, चंदा इय सोमलेस्सा, सूगेडव दित्ततेया, सागरो इव गंभीरा, विहग डव सव्वओ विप्पमुका, मंदरो इव __ अप्पकंपा, सारयसलिलंच सुद्धहियया. खग्गिविसाणं व एगजाया, 'अणिलो इत्र निरालया' अनिल इव निराल्या -पपन व गृहरहिता , ' चदो इन सोमलेस्सा' चन्द्र इव सौम्यटेश्या -अनुपतापद्दतुमन परिणामधारिण , 'मूरो इन दित्ततेया' सूर्य इव दीपतेजस -व्यत शरीरच्या भावतो जानेन च देदीयमाना । 'सागर इन गभीरा' सागर हर गम्भीरा -र्पयोकानिकारण-योगेऽपि निर्विकारचित्ता । 'विहग इस सम्वो विप्पमुवा' विहग इव सर्वतो चिप्रमुक्ता -परियारपरि यागात् नियतवासरहित वाचेति भाव । 'मदरो इव अप्पापा' मन्टर हव अप्रकम्पा -मेरुवत् परिपहोपसर्गपवनैरचलिता । 'सारयसलिल व सुद्धडियया' शारदसलिलमिन शुदहृदया -यथा शरदृती जल निर्मल भवति तथा परमनिर्मद्वया इति भार । 'सग्गिविसाणं से रहित थे। (चदो दस सोमलेस्सा) चन्द्र के समान इनकी लेश्या सौम्य थी। (मूरो इस दित्ततेया) सूर्य के समान ये दीप तेजपाले थे। शारीरिक काति द्रव्यतेज, एव ज्ञान यह भावतेज है। (सागर इव गभीरा) सागर के तुल्य ये गभीर प्रकृति के थे । हर्प शोफ आदि के कारणों के उपस्थित होने पर भी इनके चित्त में किसी भी तरह का विकार उत्पन्न नहीं होता था। (विहग इव सबओ विप्पमुक्का) पक्षी की तरह ये नियमित निवास से रहित थे। (मदरो इव अप्पकपा) मेरुपर्वत की तरह परीपह एव उपसर्गरूप परन से ये अचलित थे। (सारयसलिल व सुद्धहियया) शरद ऋतु के जल समान उनका हृदय निर्मल था। (खग्गिविसाण व एगजाया) खड्गी अपेक्षा रायता नहता (अणिलो इस निरालया) पवननी पेठे धरथी रहित उता (चदो इव सोमलेस्मा) यद्रनी पे तमनी वेश्या सौम्य ती (सूरो इव वित्ततेया) सूर्यनी पे तेश्याहीस-तेजस्वी तत शाशति द्रव्यता तभा ज्ञान से मावत छ (सागर इव गभीरा) साना वा गली२ प्रतिन। તેઓ હતા હર્ષ શેક આદિના કારણે આવી જતા પણ તેમના ચિત્તમાં કઈ प तन विधा२ अत्यन्न थती नहाता (विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का) पीना चाहतमा नियमित निवामथी २डित ता (मदगे इस अप्पकपा) મેરુ પર્વતની પ પરીષહ તેમજ ઉપસરપ પવનથી તેઓ અચલિત હતા । सारसलिल व सुदहियया) A२६ ऋतुना सनी पे तमनाय निर्भ हता (सग्गिविसाण व एगजाया) मनी (गे) शी गडानी पेठ,
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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