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________________ १९२ औषपातिकको - जच्चकणगंपिव जायरूवा, आटरिसफलगा इव पागडभावा,कुम्मा नीरङ्गणा -गण-रागायुपरम्भन तस्मानिर्गता , गो यथा फिगपि रखनद्रव्यं स्थिति न लभते तथैतेप्चनगारपु रागाढयो न तिष्ट ती यर्थ । 'जीको चित्र अप्पडिठयगई' जीव इव अप्रतिहतगतय -जीयो यथा शुभाशुभकर्मप्रशाद याहतग या सर्मन याति तथा अप्रतिहता गतिर्येषा ते तया, देशनगगटियु अपनि पवितरित्वेन वादादिषुकुतीर्थिकमतगिरगसामध्योपतत्वेन च अरम्परितगतय , 'जयणग पिव जायस्वा' जात्यकनकमिव जातर.पा --गोधितमुर्गमिव निर्मला -गगादिरहिता इयर्थ । 'आदरिसफलगा इस पागडभागा' आदर्शफरका हर गकटमाया -प्रकटा =प्रकटिता, भावा -उत्पाढव्ययध्रौव्यस्वभावका जीवाजीगादिपदार्था यैस्ते तथा, आदर्शफलका जैसे कोई भी रग स्थिति नहीं पा सकता, उसी प्रकार रागानिक भी उन अनगारा में ठहर नहीं सकते थे । अत ये शस के समान नीरङ्गण कह गये हैं । (जीवा विव अप्पडिहयगई) जीव जिस गफार शुभ और अशुभ कर्म के चश प्रेरित होकर अव्याहत गति से सर्वत्र चला जाता है उमी प्रकार इनका भी देश, नगर आदिमें अप्रतिहतगतिमिहार होने से व वाद-विवार आदि मे कुतीर्थिक मता के निराकरण करने की सामर्थ्य से युक्त होने से ये भी जीव के समान अस्खलितगतिवाले थे। (जच्चकणग पिव जायरूबा) शोषितसुवर्ग के समान ये पिन्कुल निर्मल थे। (आदरिसफलगा इव पागडभावा) आदर्श अर्थात् काच जिस प्रकार पतिबिम्बित मुखादिक अवयवों को यथावस्थित प्रकट करता है उसी प्रकार ये भी अपने ज्ञान के द्वारा उत्पाद व्यय एवं ध्रौव्य-विशिष्ट जीवाजीवादिक पदार्थों को प्रकट करते थे। इनकी રાગાદિક પણ તે અનગારમાં રહી શકતા નથી, તેથી તેઓ શ ખની પિઠે नी२ र ४उपाय छे (जीवाविव अप्पडिहयगई) भ शुभ मने शुभ કર્મવશ પ્રેરિત થઈને અવ્યાહત ગતિથી સર્વત્ર ચાલ્યો જાય, તેમ તેઓની પણ દેશ નગર આદિમા અપ્રતિહતગતિ-વિહાર હોવાથી તેમજ વાદવિવાદ આદિમા કુવીથિકમનુ નિરાકરણ કરવાનું સામર્થ્ય હેવાથી તેઓ પણ જીવની પેઠે અખલિતગતિવાળા હતા (जच्चकणग पिव जायरूवा) सोधेला सुपथना वा तसा मिला निर्भरता (आदरिसफलगा इव पागडभावा) AN अर्थात् मग म प्रतिनिमित અ આદિક અવયને યથાવસ્થિત પ્રકટ કરે છે (દેખાડે છે, તેમ તેઓ પણ પિતાના જ્ઞાન દ્વારા ઉત્પાદ, વ્યય તેમ જ પ્રૌવ્ય-વિશિષ્ટ જીવ-અછવ
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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