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________________ १७६ औपतिब्र प्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्पहाणा णिग्गहप्पहाणा निच्छयप्पहाणा अजवप्पहाणा मदवप्पहाणा लाघवप्पहाणा धारणस्य-आया जीविताऽऽगा, मरणस्य भय-त्रास , पताभ्या पिप्रमुक्ता , ' वयप्पहाणा' व्रतप्रधाना-वत-सयम प्रधानम्-उत्तम-आग्यानिमिक्षकाऽपेक्षया निम्रन्थ वाद येपा ते प्रतप्रधाना , अथवा व्रतेन-सयमेन प्रधाना श्रेष्टा -निर्मन्थश्रमणा इत्यर्थ । ते च न केवल व्यवहारत एच इत्यत आह-' गुणप्पहाणा' गुगप्रधाना -गुणा कारण्यादय , यथोक्त'परोपकारैकरतिनिरीहता, विनीतता सयमनु यचित्तता । श्रुते विनोटोऽनुदिन न दीनता, गुणा इमे सत्वरता स्वभावजा । इति, प्रतैर्गुणै प्रधाना । 'करणप्पहाणा' कग्णप्रधाना -करण=क्रिया, तचेह पिण्डविशुद्धयादिग्रूप, तेन प्रधाना , अथवा करण-पिण्डविशु यादिरूप प्रधान येपा ते करणप्रधाना, 'चरणप्पहाणा' चरणप्रधाना-चरण-महाव्रतादिमूलगुणरूप तप्रधाना , 'जिग्गहप्पहाणा' निग्रहप्रधाना -इन्द्रियनोइन्द्रियदमनप्रधाना, 'निच्छयप्पहाणा' निश्चयप्रधाना -निश्चय -तत्वनिर्णय , तर प्रधाना , अथवा अवश्यकरणीयासु मयमक्रियासु निश्चितचित्ता, 'अजरप्पहाणा' आर्जनप्रधाना --आर्जय-मायाराहित्य तत्प्रधाना , कर्पूरवदन्त हिनिर्मला , ' महवप्पहाणा' मार्दवप्रधाना -मार्दव-मानोभयसे जो सर्वथा विप्रमुक्त थे । (वयप्पहाणा)व्रतपालन करनेके कारण प्रधान थे, (गुण पहाणा) क्षान्त्यादि गुणोंसे प्रधान थे, (करणप्पहाणा) पिण्टविशुद्धयादि रूप मुनियोंकी क्रियामे प्रधान थे, (चरणप्पहाणा) महानत आदि मूल गुणोंसे प्रधान थे, (णिग्गहप्पहाणा) इन्द्रिय, नोइन्द्रिय (मनके) दमन करनेमे प्रधानथे, (णिच्छयप्पहाणा) तत्त्वनिर्णय तथा अवश्यकरणीय सयम क्रियामे प्रधान थे। (अज्जवप्पहाणा) सरलतामे प्रधान थे, अर्थात् कपूर के तुल्य अन्तर बाहर निर्मल थे। (मद्दवप्पहाणा) मानके उदयका निरोध करनेवाले सीधा हता, (जीवियास मरण भय-निष्पमुक्का) वानी मा तभ०४ भरना लयथा या सर्वथा भुत उता (वयप्पहाणा) प्रतपादान ७२वाना धारणे प्रधान उता, ( गुणप्पहाणा) क्षन्ति माहि गुथा प्रधान (भुज्य) उता, (करणप्पहाणा) विविशुद्धि-माहि३५ भुनियानी ज्यामा प्रधान हता, (चरणप्पहाणा) महानत याहि मृतशुणेथी प्रधान हुता, (णिग्गहप्पहाणा) पाय नावद्रियनु भन ७२पामा प्रधान उता, (मिच्छयप्पहाणा) aa निय तथा अवश्य ४२वानी सयमडियामा प्रधान उता (अनवप्पहाणा) સરલતામાં પ્રધાન હતા, અર્થાત્ કપૂરની પેઠે અતર બહારથી નિર્મળ હતા, (महवप्पहाणा) मानना जयने। निरोध ४२११५ मा सत्याहि म18 Hot
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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