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________________ पपात १७२ हाणपडिमं पडिसंलीणपडिमं पडिवण्णा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ॥ सृ. २४ ॥ पन्ना । तथा - केचित 'विवेगपडिम' निपनिमा-विवेचन निवेश्यागम अन्तरागा पायाहीना यानाच गंगागनुचितभक्तपानादीनाम्, तस्य प्रतिमा = प्रति पत्तिर्विनेक प्रतिभा ता, 'रिओसग्गपडिम ' यु सर्गप्रतिमा=कायो सर्गप्रतिमाम्, 'उवहाणपडिम' उपधानप्रतिमाम् - मोक्ष प्रति उप= सामीप्येन दधाति = नयतीत्युपधानम् - अनशनादिक तपस्तद्विषया प्रतिमा-अभिहस्तां, तथा 'पडिसंकीणपडिम ' प्रतिमचीनप्रतिमा= कोधाद्विनिरोधाऽभिग्रह 'पडिवण्णा' प्रतिपन्ना भयमेन तपसा आत्मानम् भावयन्त विहरन्ति ॥ सू० २४ ॥ I है । जैसे वज्रका मध्यभाग पतला होता है उसी प्रकार इस प्रतिमा का भी मध्यभाग अमावास्या और शुक्लपक्ष की एकग, एक एक कवल आहार लेने के कारण पतला है, इसीलिये इस प्रतिमा को 'वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा' कहते है । तथा कितनेक मुनिजन " विवेगपडिम' निषेकप्रतिमाने अर्थात् आभ्यन्तरिक कपायादिकों के, तथा गण, स्वशरीर और अकल्पनीय भक्तपानादिकों के व्याग की प्रतिमा के, 'विओसग्गपडिम ' व्युत्सर्गप्रतिमा के, अथात् कायोत्सर्गप्रतिमा के, 'उवहाणपडिम' उपधान प्रतिमा के अर्थात् अनशनादिरूप उम्र तपस्या की प्रतिमा के, तथा - ( प डिलीणपडिम ) प्रतिसलीन प्रतिमा के अथात् क्रोध आदि कपायों के निरोध करने के अभिप्रह के ( पडिवण्णा) धारक थे । पूर्वोक्त सभी प्रकार के मुनिराज सत्रह प्रकार के सयम से એક એક કોળિએ વધારતા જઈ પૂનમને દિવસ પત્તર કોળિઆ આહાર લેવાય છે જેમ વાના મધ્યભાગ પાતળે હાય છે તેવી જ રીતે આ પ્રતિમામા પણ મધ્યભાગ--અમાવાસ્યા અને શુક્લ પક્ષની એકમ, એક એક કોળિ આહાર લેવાના કારણે પાતળા છે, એ માટે જ આ પ્રતિમાને “ વમધ્યयद्रप्रतिभा ” मुडेवाय छे तथा उसमे भुनिन्न ( विवेगपडिम ) विवे:પ્રતિમાના અર્થાત આભ્ય રિક કષાય આદિના, તથા ગણના, પેાતાનાशरीरना भने सम्स्थनीय लोभन पान साहिना त्यागनी प्रतिभाना (विओसग्गपडिम) व्युत्सर्गप्रतिभा भेटले आायोत्सर्ग प्रतिभाना, ( उवहाणपडिम) उपधानप्रतिभाना अर्थात् अनशन साहि३५ उग्र तपस्थानी प्रतिभाना, तथा ( पडिलीणपडिम) પ્રતિસ લીનપ્રતિમાના અર્થાત્ કોષ આદિ કાયાના નિરોધ કરવાના અભિગ્રહના (पडिनण्णा) धा२४ हृता भूथेत सर्व अभरना मुनिरान सत्तर अझरना सय
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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