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________________ पीयूषवषिणी टीका सू २४ भगवदन्तेयासियणनम् १६७ राइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा, सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं, पडिवण्णा' अहोरानिन्टिवा भिक्षुप्रनिगा एतिपन्ना -आहोगत्रिकीमित्यर्थ । अत्र-रात्रिदिवगन्दो रानिपरो बोच्य । अस्याञ्च पप्ठोपवासिको प्रामादिभ्यो यहि प्रलम्बभुजस्तिष्ठति । 'एकराइदिय भिसुपडिम पडिवण्णा' फरानिन्दिवाम् एकरात्रप्रमाणा भिक्षुप्रतिमा प्रतिपन्ना , अगपि 'रात्रिन्दिर' गटो गत्रिपरो बोध्य । अस्या चाऽटम भक्तिको प्रामाद् वहिरीपदवननगानोऽनिमिपनयन शुष्कपुद्गलनिनदृष्टिर्जिनमुद्रास्थापि__ सन पर बैठे हुए के समान घुटने अलग २ रसकर बिना सहारे स्थिर रहना, (२) गोटोहिकासन-गोटोहिक के समान बैठना अर्थात् जैसे गाय दृहने वाला जब दूध दृहता है तर वह अपने दोनों पैरों के अग्रभाग के सहारे बैठता है, उसी प्रकार बैठना । (३) आबकुल्जकासन-आम्रफल के समान कृपडे होकर स्थिर रहना । आठना नौमी दामी प्रतिमा में तीन २ आसन बताये है, उन तीन तीन में से किसी एक आसन से रहे । तथा (अहोराइदिय भिस्खुपडिम पडिवण्णा) ग्यारहवीं अहोरात्रिक भिक्षुप्रतिमा के धारक थे। इसमें चउविहार वेला किया जाता है, और गाम के बाहर आठ प्रहरी तक काउसग किया जाता है। (एकराइदिय भिक्खुपडिम पडिवणा) वाहिनी ____एकरात्रिक भिक्षुप्रतिमा के धारक थे। इसमे चउनिहार तेले के दिन गाम से बाहर श्मशान भूमि में जाकर किसी एक पुदगल पर दृष्टि स्थिर करके चार प्रहरों तक झायोसर्ग किया जाता है । इन सभी प्रतिमा-अभिग्रहविशेषों में सभी का ગોઠણે જુદા જુદા રાખીને ટેકે લીધા વિના સ્થિર રહેવું, (૨) દેહિનામનગદેહિકની પિઠે બેસવુ અર્થાત જેમ ગાય દેહવાવાળે જ્યારે દૂધ દોહે છે ત્યારે તે પોતાના બન્ને પગના અગ્રભાગને ટેકે બેને છે, તેવી જ રીતે બેસવુ (3) આમ્રકુજનામન–આમ્રફલની પેઠે કુબડા થઈને સ્થિર રહેવુ આઠમી નેમી અને દશમી પ્રતિમામાં ત્રણ ત્રણ આસન બતાવ્યા છે તે ત્રણ ત્રણમાંથી કોઈ ५ यो सामनयी २९ तया (अहोराइदिय भिक्खपटिम पडिवण्णा) महाशत्र. દિવસરાતની અગ્યારમી ભિક્ષુપ્રતિમાના ધારકે હતા આમા ચૌવિહાર ७४ आय छ, भने गामनी मा२ २मा पारन! IG41 राय छ (एक्काइदिय भिक्खुपटिम पडिपण्णा) सारभी रात्रि लिन प्रतिभाना घा२४ gal આમા ચૌવિહાર તથા અમને દિવસે ગામથી બહાર શમશાન ભૂમિમાં જઈને એક પુદગલપર દષ્ટિ સ્થિર કરીને કાયોત્સર્ગ કરાય છેઆ બધી પ્રતિમાઓમાં
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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