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________________ १४४ औपातिक __ एवमाडणो उत्तम-जाइ-कुल-रुव-विणय विष्णाण-वण्ण लावण्ण-विक्रम-पहाण-सोभग्ग-ति-जुत्ता वह धण-धण्णपुन 'अण्णे' अन्ये-उतातिरिक्ता , 'पहरे' वहा - यका । 'एमाइणो' एवमादय व प्रकारा , ' उत्तम-नाइ कुल-स्व-विणय विण्णाण पण्ण-विकम पहाणसोभग्ग-कति जुत्ता' उत्तम-जाति-कुर-रूप-विनय विज्ञान-वर्ग-लापण्य-विक्रम-प्रधानमौभाग्य-कान्ति-युक्ता -उत्तमा -श्रेष्ठा जायान्यो विक्रमान्ता , तर-जातिमातुश , कुलपितृवा, रूप-गरीराऽऽकार , विनय कायिक-याचिक-मानसिक पिशुदिनम्रता च, विज्ञाननसाराऽमारतारूपं विशिष्टज्ञान, वर्ण कायफान्ति ,लावण्यम्-आकारस्यैपस्पृहणीयता, विक्रमः पराक्रम , प्रधाने-श्रेष्ठे ये सौभाग्यशान्ती-सोमार-मुन्दग्भाग्यम् , कान्ति -टीमि -एताभ्याम् सौभाग्यकान्तिभ्याम् , तथा उत्तमनायादिभियुक्ता उत्तमजा यादिमन्त प्राजिता , तथा 'बहु-धण-धण्ण-णिचय-परियाल-फिडिया' बहु-धन धान्य-निचय-परिचार(अण्णे य पहबो एवमाटणो) भगवान के समीप और भी बहुत से प्रत्रजित हुए थे, वे सर (उत्तम-जाइ-कुल-रूप-विणय-विष्णाण-वण्ण-लावण-विकमपहाण-सोभग्ग-कति जुत्ता) उत्तमजाति-निर्मलमातृवा, उत्तमकुल=निर्मलपितृवश, उत्तमरूप-सुन्दर आकार, विनय-कायिक वाचिक मानसिक विशुद्धि, अथवा नमता, विज्ञान-मपार को असार समझने का बुद्धि, वर्ण-गरीरकान्ति, लावण्य-गरीर का जगमगाहट, विक्रमः-गारीरिक पल, श्रेष्ठ मौभाग्य और उत्तम दाति से युक्त थे। (वहु-धण-धण्ण-णिचय-परियाल-फिडिया परवड-गुणा-दरेगा इच्छियभोगा मुहसपललिया) कितनेक इस शिष्यमडला मे ऐसे भी थे जो दीक्षित होने के पहिले गणिम एव धरिमरूप धन की एव शाला आदि धान्य की राशियों से, और पाय प्रजित या लता तेमा मया (उत्तम जाइ-कुल रूव विणय विण्णाण वण्ण लावण्ण-विकम-पहाण-सोभग्ग कति-जुत्ता) उत्तभवति-निभं भातृश, उत्तम કુળનિર્મળ પિતૃવશ, ઉત્તમરૂપસુંદરઆકાર, વિનય=કાયિક વાચિક માનસિક વિશદ્ધિ, નમ્રતા, વિજ્ઞાન-સસારને અસાર સમજવાની બુદ્ધિ, વર્ણ=શરીરની કાતિ, લાગ્ય=શરીરને ઝગમગાટ, વિકમ શારીરિકબલ, શ્રેષ્ઠ સૌભાગ્ય તથા उत्तम सिवाणा ता (पधण धण्ण णिचय परियाल फिडिया परवइ-गुणा-इरेगा लियमोगा सुहसंपललिया) 32वामे, 20 शिध्यम वीमा का पता જે દીક્ષિત થયા પહેલા ગણિમ તેમજ ધરિમરૂપ ધનના, તેમજ શાલી આદિ ધાન્યના ઢગલાથી અને દાસદાસીઓ આદિ પરિવાર સમુદાયથી રાજની
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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