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________________ १४. औपपातिकमरे लागर-संड-बोहए उहियम्मि सूरे सहस्सास्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते, जेणेव चंपाणयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेहए,जेणेव वणसंडे, शोक =प्रमिद्धवृक्ष -जस्य प्रकाश प्रभा, म मायोकप्रकार मचकिगुरु-परागपुष्प, शुरुमुख च, गुना-रक्तकग फलपिगेप -- च का भाग , तपा यो गगरक्तवर्ण तेन सदृश -समान तस्मिन-तत्तुन्यतालिपयुक्त, 'मलागर-सड-बाहए' कमलाऽऽकर-पण्ट-बोधके-कमानामाकग -कमलो पत्तिम्यागी नटागान्य , तेपु-स्मनाकग्यु यानि पण्डानि-कमलयनानि, तपा नोक विकाशक तस्मिन-कमल-माविकागकारिगा यर्थ , 'उद्वियम्मि' उयिते-उदिते 'मरे' मर्य, पुन कीदृशे 'सहससिमि दिणयर तेयसा जलते' सहस्ररश्मौ दिनको तेजसा चलति-मन-महम्रपरिमिता रमय =फिरणा यस्य स तस्मिन् तादृशे दिनकरे--दिवसकारके, तेसा-विग्णपुग्नेन, चलति-जा-न्यमान सति, 'जेणेव चपा णयरी' यौव चम्पा नगरी वर्तत इति शेप । 'जेर पुगभदे चेदए' यौव पूर्णभद्र चैयमुद्यानमस्ति । 'जेणेष वणसढे' यत्र, वनपग्ट, 'जेणेव असोगवरपायवे' यत्रैवाशोफवरपादप , 'जेणेव पुढविसिलापट्टए' यौन पृथ्वी सुयमुह-गुजद्धराग-सरिसे कमलागर-सड-योहए ) रक्त-अशोक के प्रकागतुल्य, पलाशपुष्प के समान, शुक के मुस के समान और गुजा के आधे भाग का ललाई के समान, कमलवनों को विकसित करनेवाला प्रभात होने पर (उहियमि सूरे) आकाश में सूर्य का उदय होने पर, और पश्चात् (सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलते) सहस्रकिरणवाला दिनकर जब अपने तेजसे आकाश मे चमकने लगा तर (जेणेप चपाणयरी जेणेव पुण्णभदे चेहए जेणेव वणसडे जेणेव असोगवरपायवे जेणेव पुढवीसिलापट्टए तेणेव उवागच्छद) जहाँ वह चपानगरी थी, जहाँ वह पूर्णभद्र उद्यान था, जहाँ वह अशोक वरवृक्ष था, जहाँ पृथियाशिलापटक था, वहा गुजद्धराग-सरिसे) २४ मशीन प्रश सभान, िशु-मुडाना पुण्य मान, શુકમુખ–પિપટના મુખ્ય સમાન, અને ગુ જાના અર્ધભાગની લાલાશ સમાન (कमलागरसडबोहए) मसना बनाने मीसापाणु प्रभात ॥ (उट्ठियम्मि सूरे) साशमा सूर्य ना ६य यता भने पछी (सहस्मरसिमि दिणयरे, तेयमा जलते ) सहसपिपाण। सूर्य न्यारे पाताना ते४५, मासमा यमका यो त्यारे, (जेणेव चपाणयरी जेणेघ पुण्णभद्दे चेहए जेणेव वणसडे जेणेव असोगवरपायवे जेणेव पुढवीसिलापट्टए तेणेव उवागच्छड) ज्या ते .पानगरी હતી. જ્યા તે પૂર્ણભદ્ર ઉદ્યાન હતું, જ્યા તે અશેઠ વરવૃક્ષ હતું અને જ્યાં
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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