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________________ पोयूपयपिणो-टोका स २० कृणिककृत. प्रवृत्तिन्यापृतमत्कार णमंसित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता तस्स पवित्तिवाउयस्स अट्रुत्तर सयसहस्सं पीइदाणं दलयइ, दलडत्ता सकारेड मम्माणेड, सकारिता संमाणित्ता एवं वयासी ॥ सू० २० ॥ 'सीहासणारगए ' सिंहासनपरगत , 'पुरत्याभिमुहे ' पौरत्याभिमुस ,-पूर्वाभिमुख सन 'निसीयट' निपादति-उपविगति, 'निसीटत्ता' निपद्य-उपविस्य 'तस्स पवित्तिवाउयम्स' तस्मै प्रवृत्तिव्याताय-भगवनागमननिवेदकाय, 'अठुत्तर सयसहम्स पीटढाण दलयद' अष्टोत्तर शतमझ प्रीतिदान ददाति-अष्टाधिक लक्षमित राजतमुद्रारुप प्रीतिदान=तुष्टिदान पारितोषिक ददाति । 'दलइत्ता सकारेड समाणेड' रवा सत्करोति यत्रादिना, समानयति आसनादिना, दान विधिसहितमेव भत्र्यम्य भपति-इति भार । 'सकारिता सम्मागित्ता एवं वयासी' सत्कृय= सन्तोष्य, समान्य सम्मान विधाय, एव-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् ॥ सृ० २० ॥ निसीयड) पढन नमन करके वह कोणिक राजा अपने सिंहासन पर पीछे जाफर पूर्व का तरफ मुग्य करके बैठ गये। (निसीइत्ता तस्स पवित्तिवाउयस्स अट्ठत्तर सयसहम्स पीटदाण दलयड) बैठकर फिर उन्हान उस देशवाहक को प्रीतिदान मे-पारितोपिकरूपसे १ लाय ८ चादी की मुद्राएँ दी। (दलइत्ता सकारेइ सम्माणेट) देकर उसका खूब सत्कार किया और समान किया, (सकारिता समाणित्ता एप बयासी) आदर सत्कार कर चुकने पर फिर राजाने उससे इस प्रकार कहा-सू०२०॥ तेभर नभा२ ४ा-५ -नमन-पूर्व नभ२४१२ ४ा (वदित्ता नमसित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे निसीयइ ) वहन नभP२ ४ीन ते अ४ि२सन्न પિતાના સિંહાસન પર પાછા જઈને પૂર્વ તરફ મુખ કરીને બેસી ગયા (निसीइत्ता तस्स पवित्तिनाउयस्स अहुत्तर सयसहरस पीइदाण दलयइ) मेसीन પછી તેમણે તે સંદેશવાહકને પ્રીતિદાનમા પારિતોષિક (ઈનામ) રૂપે १ सय ८ मुदाय मापी (दलइत्ता सकारेड समाणेइ) छने तेना भूम २ यो यने सन्मान यु (सकारित्ता समाणिसा एव वयासी) આદર સત્કાર કરી ચુક્યા પછી રાજાએ તેને આ પ્રકારે કહ્યુ -(સૂ ૨૦)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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