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________________ औपपातिकसूत्रे रंस-संठाण-संठिए वन-रिसह-नाराय-संघयणे अणुलोमवाउवेगे कंकग्गहणी कवोयपरिणामे सउणिपोस-पिट्टतरोरुपरिणए पउमुसप्तहस्त उत्सेधो यस्य स सप्तहस्तोत्सेध -सप्तहस्तोच्छित इत्यर्थ । 'सम-चउ-रससठाण-सठिए' सम-चतुरस्र-मस्थान-मस्थित -समा:-तुल्या अन्यूनाधिका , चतलोऽस्रया-हस्तपादोपर्यधोरूपाश्चत्वारोऽपि विभागा [शुभलक्षणोपेता] यस्य (मस्थानस्य) तत् समचतुरस्र-तुल्यारोहपरिणाह तच मस्थानम्-आकारविशेप इति समचतुरस्रसस्थान, तेन सस्थित -युक्त । 'वज-रिसह नाराय-सघयणे' वापभनाराचसहनन -- वज-कीलिकाकारमस्थि, ऋपम -तदुपरिवेष्टनपट्टाऽऽकृतिकोऽस्थिविशेप, नाराचम्उभयतोमर्कटबन्ध , तथा च द्वयोरस्थ्नो परिवेष्टितयोरुपरि तदस्थित्रय पुनरपि दृढीकर्तुं तत्र निखात कीलिकाऽऽकार वज्रनामकमस्थि यत्र भवति तद् वजम्पभनाराच तत् स्हनम्-सहन्यन्ते दृढीक्रियन्ते गरीरपुद्गला येन तत्महननम्-अस्थिनिचयो यस्य स वजऋपभनाराचसहनन । 'अणुलोमवाउवेगे' अनुलोमवायुवेग -अनुलोमोऽनुकूलो वायुवेग =शरीराऽन्तर्वर्ती वायुवेगो यस्य स तथा, वायुप्रकोपरहितदेह इत्यर्थ , 'ककग्गहणी' ककग्रहणी–कङ्क पक्षिविशेष , तस्य ग्रहणीव ग्रहणी यस्य स कड्पग्रहणीककगुदाशयवद् गुदाशयवान् । 'कवोयपरिणामे' कपोतपरिणाम -कपोतस्येव परिणाम आहारपरिपाको यस्य स तथा, यथा कपोतस्य जाठराऽनल पाषाणकणानपि पाचयति तथा तस्यापि जाठरानलोऽन्तप्रान्वादिसर्वविधाऽऽहारपरिपाचक । 'सउणिहत्थुस्सेहे ] सात हाथ उँचे है। ( समचउरस-सठाण-सठिए) समचतुरस्रसस्थानवाले [वज-रिसह-नाराय-सघयणे ] वज्र-उपभ-नाराच-सहनन से युक्त [अणुलोमवाउवेगे] अनुकूल गरीरान्तर्वर्ती वायु के वेग से समन्चित, [ ककग्गहणी] ककपक्षी के गुदागय के समान गुदाशयवाले, [कवोयपरिणामे | कपोत की जठराग्नि जिस प्रकार ककर पत्थर के कगों को भा पचा देती है उसी प्रकार प्रभु की जठराग्नि भी सब प्रकार के आहार को पचा देती है ऐसी जठराग्नि वाले, सभयतरस स स्थानकात (वज्ज-रिसह-नाराय-सघयणे) १०--नारायसहननथी युत (अणुलोमवाउवेगे) मनु शरीरातती वायुना वेगथी समत(ककरगहणी) 53 पक्षीन गुहाशयनारा गुशिया कियोयपरिणामे) पातना १४नि २ ४२ ४३२१-पत्थरनी ठणीयाने पण પચાવી દે છે તે જ પ્રકારે પ્રભુને જઠરાગ્નિ પણ અન્ત પ્રાન્તઆદિ સર્વ પ્રકા
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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