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________________ 20 औपपातिकमत्रे बोध प्राप्त । 'बोहए' बोधक बुध्यमानान् अन्यान् भव्यजीवान् प्रेरयतीति बोधक 'मुत्ते' मुक्त -अमोचि स्थय कर्मपनरादिति मुक्त । 'मोयए' मोचक-मुध्यमानानन्यान् भन्यजीवान् प्रेरयतीति मोचक । 'सवण्णू' सर्वज -सर्व सफलद्रव्यगुग-पर्यायलक्षग यस्तुजात याथातथ्येन जानातीति सर्वन । 'सव्वदरिसी' सर्वदर्शी-सर्व समस्त पदार्यस्वरूप सामान्येन द्रष्टु शीलमस्याऽमो सर्वदगी । 'सिव' शिन निखिलोपद्रवरहितत्याच्छिव-कन्यागमय, स्थानमित्यस्य विशेषगमिदम्। शिवादीना सर्वेषा द्वितीयान्तानामगेतनेन सपाविउकामे इत्यनेन सम्बध । 'अयल' अचल स्वाभाविकप्रायोगिकचलनक्रियाशून्यम्। 'अरुय' अरुजम्-अविधमाना रुजो यस्य तारक है। (युद्धे) स्वय बोव को प्राप्त होने के कारण भगवान् बुद्ध है, (बोहए ) वुभ्यमान अनेक भव्य जीरों को प्रेरित करने से वे बोधक है, (मत्ते) भगवान ने स्वय कर्मरूपी पीजरे से मुक्ति प्राप्त की, इसलिये मुक्त हैं । (मोयगे) और कर्मरूपी पोंजरे से मुक्त होने की इच्छावाले जोगों को उन्हों ने मुक्त किया इसलिये वे मोचक है । (सवण्ण) सफलद्रव्यों के समस्त गुण और पर्यायाँ को युगपत् हस्तामलकवत् यथार्थ जानन से प्रभु सर्वज्ञ हैं । (सन्नदरिसी) __ तथा सामान्यरूप से त्रिकालवर्ता समस्त द्रव्यों के द्रष्टा होने से प्रभु सर्वदर्शी हे । (सिव-मयल-मरुय-मणत-मक्खय-मन्यावाह-मपुणरावत्ति सिद्धिगडणामय ठाण सपाविउकामे ) निखिल उपद्रव रहित होने से शिव-कन्यागमय, स्वाभाविक एव प्रायोगिक चलनक्रिया से शून्य होने के कारण अचल, गरार तथा मन से પ્રેરિત કર્યા તેથી તેઓ તારક છે (ફુઢ) પતે બેધ પામેલા छापानी रो लापान भुद्ध छे (वोहए) सुध्यमान भने सय वाने माध भाटे प्रेरित ४२पायी तमामा छ (मुत्ते) पाने पोते भी पाराभाथी भुमि प्राप्त तथा तेसो भुत छ (मोयगे) अने मेंરૂપી પી જરામાંથી મુકત થવાના ઈછાવાળા જીવોને તેઓએ મુકત કર્યો તેથી तेसी भाय: छ (सवण्णू) मस द्रव्यो (पहाथीना) मभन्त गुएर भने પર્યાયને યુગપત્ હસ્તામલકવતું યથાર્થરૂપે જાણવાથી પ્રભુ સર્વજ્ઞ છે (सव्वदरिसी) तथा सामान्य ३५यी त्रिसरती सभरत द्रव्याना द्रष्टा हावाथी प्रासशी छ (सिव-मयल-मरुय-मणत-मक्सय-मव्वापाह-मपुणरापत्ति सिद्धिगइणामधेय ठाण संपाविउकामे) स४॥ उपद्रव २डित डावाथी शिपच्याए મય, સ્વાભાવિક તેમજ પ્રાદેશિક ચલન ક્રિયાથી શૂન્ય હેવાના કારણે અચલ,
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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