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________________ ६७ पीयूपयपिणी-टीका सू. १५ उपम्यानशालागतकृणिकयनम् . कर्तव्यालोचन मन्त्र , सोऽम्यास्तीति मन्त्री, बहुमल्यका मन्त्रिण , विचारकारका इत्यर्थ , महामन्त्रिण -मन्त्रिमण्डलप्रधाना -सूक्ष्मातिमूक्ष्मविचारका इत्यर्थ , गणग-गणका -ज्योतिपिका -शुभाशुभफादेशकारिण , ' दोबारिय' दौवारिका द्वारपाला , अमात्या -राज्यहितचिन्तका -अष्टादशाना प्रकृतीना-नागरिकगीना महत्तरा इति यावत् , चेटा दासा , पीठमा -अगमवाहका --आमनसमीपनतिन -सेनका, नागरा =नगरवासिनो नागरिका, नगमा -पौरवगिज , शेष्ठिन -लक्ष्मीकृपासूचकपालकृतका प्रधानन्यवहारिण ' सेणावड' मेनापतय -चतुरङ्गसेनायाश्चतुर्विमा अधिपा , सार्थवाहा -साथ समानत्र्यवसायिसमूह वाहयन्ति योगक्षेमाभ्या रक्षन्ति इति अथात्-समूहन दूरदेश गवा क्रयविक्रयकर्तार । दूता-मन्देशहग , मन्धिपाला-युध्यमानेन राज्ञा कृत सन्धि त पालयन्तीति सन्धिपाला । एतेपा द्वन्द्व विधाय तैर्गगनायकादिमन्धिपालाऽन्तै सार्द्धम् , अत्र आर्पनात् सन्धिपालगन्दोत्तरवर्तितृतीयाविभक्तेलोप , 'सपरिखुढे' सम्परिवृत -स-- सम्यक् समन्ताद्वेष्टित 'विहरई' विहरति-सुग्वेन काल नयति स्मेति भाव ॥ सू० १५ ॥ मन्त्रियों से कर्तव्य की समीक्षा करनेवाले विचारवान पुरुपों से, महामन्त्रियों से समातिमू मविचारशील मन्त्रिमण्डल के प्रधानों से, गणों से शुभ, अशुभ फल पा निवेदन करनेवाले ज्योतिपियों से, दौवारिकी से द्वारपालों से, अमात्यों से राज्य के हित चिन्तको से अर्थात् अठारह प्रकृतियों-जातियों के मुखियों से, चेटों से दासों से, पीठमईकों से अङ्गमईको से अर्थात् समीप में रहनेवाले सेनको से, नागरों सेनागरिक पुरुपों से, नैगमों से-पौरवणिगजनों से, प्ठियों से लक्ष्मी की कृपा का सूचक पट्ट से सुशोभित मुरय मुरय सेठों से, सेनापतियों से-चतुरङ्गिणी सेना के नायकों से, सार्थवाहों से, दूतों से, तथा-सन्धिपालों से शत्रु राजाओं के साथ सन्धि करने के लिये नियुक्त अधिकारी पुरुपों से परिवृत होकर वठे हुए थे । सू० १५॥ કરનારા વિચાગ્યાન પુરૂથી, મહામ ત્રિઓથી સૂક્ષ્માતિસૂમ વિચારશીલ મત્રિમ ડલના પ્રધાનેથી, ગણકેથી=શુભ અશુભ ફલના નિવેદન કરવાવાળા જ્યતિષિએથી, દૌવારિકેથી દ્વારપાળોથી, અમાત્યોથી, રાજ્યહિતચિતકેથી અર્થાત્ અઢાર પ્રકૃતિ-જ્ઞાતિઓના મુખિઓથી, ચેટેથી=દાસેથી, પીઠમકેથીઅગમર્દકેથી અર્થાત પાસે રહેવાવાળા (હજુરીઆ) વકેથી, નાગરોથી= નાગરિક પુરૂષાથી, નિગમોથી=પર વણિક જનથી, શ્રેષ્ઠિઓથી=લકમીની કૃપાના સૂચક પટ્ટથી સુશોભિત મુખ્ય મુખ્ય શેઠેથી, સેનાપતિઓથી ચતુરગિણી સેનાના નાયકેથી, સાર્થવાહોથી, દતથી તથા અધિપાસેથી શત્રુ રાજાઓની સાથે સંધિ વરવાને માટે નિમણુંક કરેલા અધિકારી પુરૂથી વીટળાઈને બેઠા હતા (સૂ ૧૫
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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