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________________ पीयूपयर्पिणी-टोका म १५ स्थानशालागतकूणिकपर्णनम्. मूलम्-~तेणं कालेणं तेणं समरणं कोणिए राया __ भंभसारपुत्ते वाहिरयाए उबट्टाणसालाए अणेग-गणणायग-दंड अनरूपम्-इट द्वितिर वेतन-जाविका रत्त येभ्य , ते दत्तमृति-भक्तरेतना 'भगवओ पवित्तिवाउना'-भगवत प्रवृत्ति यात्रता -भगवनिहारसमवसरगादिवृत्तान्त-निवेदन नियुक्ता, भगरतस्तदैवमिकी प्रवृत्ति निवेदयन्ति-कथयन्तानि यारत् , नोकेन मृत्येन तादृगप्रतिबन्धविहारिणो भगवत विहारममयमरणातानिवेदन मुलभम् इति हेतोपत्र कार्ये वहवो नियुक्ता इति भाव ॥ मू० १४ ॥ टीका-'तेण कालेण तेणं समएण' इत्यादि, तस्मिन काले तस्मिन् समये 'कोणिए राया भभसारपुत्ते' कोगिको गजा भभसारपुत्र --अय कोणिको नृपो भभमारस्य-श्रेणिकापरनामरता नृपम्य पुन , 'बाहिरियाए उबट्टाणसालाए' बाह्यायामुपस्थानशालायाम-नाये ममागृह-'अणेग-गणणायग-दडणायग-राई-सर-तलवर-माडवेतन लिया जाता था। (भगवओ) वे भगवान् महावीर के ( पवित्तिवाउया ) विहार और ममवमरण आदि वृत्तान्त का निवेदन करन के लिये नियुक्त थे, [भगवओ नदेवसिय पवित्ति णिति ] इसलिये वे भगवान् की विहाग्मवधी एव समवमरणमधा नाता प्रतिदिन आफर के निवेदन करते थे । सू० १४ ॥ तेण कालेण तेण समएण' इत्यादि । (तेण कालेण तेण समएण ) उस काल उस समय (कोणिए राया भभसारपुत्ते) मभसार-णिक नृप के पुत्र कोणिक राजा (वाहिरयाए उवट्ठाणसालाए) बाहर की उपस्थान शाला मे (अणेग-गणणायग-दडणायग(५२) मापामा मातु (भगरओ) तया सापान महावीरन (पवित्तिपाउया) विहार भने समक्सर माहि वृत्तांतनु निवन ४२५॥ भाट राणेसा हुता ( भगनमो तद्देनेसिय पवित्ति णिवेदेति ) तथा तया सापाननी विहार બધી તેમજ સમવસરણ એ બધી વાર્તા દરરોજ આવીને નિવેદન કરતા हता (सू १४) " तेण कालेण तेण समएण" त्याहि. (तेण कालेण तेण समएण) ते डरते समये (कोणिए राया भभसारपुत्ते) म समा२-श्रेपि न पुत्र आणि गल (नाहिरयाए उवट्ठाणसालाए) महा२नी यान शालामा (अणेग-आणणायग-दडणायग-राई-सर-तलपर-माड
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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