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________________ औषपातिकमंत्र करयल-परिमिय-पसत्थ-तिवली-वलियमज्या कुंडल्लु-लिहिय-गंडलेहा कोमुइय-रयणियर-विमल-पडिपुण्ण-सोमवयणा सिंगारागारमङ्ग-वपुर्यम्या सा तथोक्ता 'ससि-सोमामार-कत-पिय-दसणा' शगि सौम्याकारकान्त-प्रियदर्शना, शीव चन्द्र इव सौम्य =मुन्दर आकार यरूप यस्या सा तथा, कान्ता कमनीया-मनोहरा, प्रिय हुत्याहादक दर्शन यस्या सा तथा । तत पदनयस्य कर्मधारय । 'मुख्वा' सुरूपा-योभन रूप यस्या सा तथा । 'करयल-परिमिय-पसत्य-तिवली-चलिय-मज्झा' करतल-परिमित-प्रशस्त-रिवली-चलितमध्या-करतलेन परिमित -प्रमाणित -मुष्टिग्राह्य इत्यर्थ , स चासौ प्रारत शुभ , निपलीवलित =उदरोपरि वर्तमाना तिरेखा त्रिवलिस्तया वलितो-युक्तो मध्यो मध्यभागा यस्या सा तया । 'कुडलु-लिहिय-गडलेहा' कुण्डलो-ल्लिपित-गण्डलेखा, कुण्डलाभ्यामुल्लिखिता घृष्टा गण्डलेखा-कपोलमण्डले रचिता पत्रावली यस्या सा तथोक्ता, 'कोमुइय-रयणियर-विमल-पडिपुण्ण-सोमवयणा' कौमुदित-रजनीकर-विमल-परिपूर्णसौम्यवदना, कौमुदित शरच्चन्द्रिकासहितो यो रजनीकर =पूर्णचन्द्रस्तद्वद् विमल होने से यह देखनेवालों के लिये बडी ही कान्त-मनोहर लगती थी, इसलिये इसका दर्शन हृदय का आह्लादक होता था । (सुरुवा) और यही कारण था कि जिसकी वजह से यह सुरूपा थी। (करयल-परिमिय-पसत्य-तिवली चलियमज्झा) इसका मध्यभाग--कटिप्रदेश करतलपरिमित अर्थात् मूठी में आसके इतना पतला था, प्रशस्त था, तथा इसका उदर त्रिवलीयुक्त था। ( कुडलु-ल्लिहिय-गडलेहा कोमुइय-रयणियर-विमल-पडिपुण्ण-सोमवयणा )इसके कपोल्मटल पर जो पत्रावळी रचित थी वह कानो मे पहिरे हुए दोनो कुण्डली से उल्लिखित-घृष्ट होती रहती थी। इसका जो सौम्यवदन-सुन्दर मुख था वह चन्द्रिका से समन्वित रजनीकर अर्थात् નાગઓ માટે ઘણી જ કાત મનહર લાગતી હતી તેથી તેનું દર્શન હૃદયને मासा यतु तु (सुरुवा) भने ४ थी ते सु३॥ हती (फरयल परिमिय-पसत्य तिपली-बलियमज्झा) तेना मध्यमा-रिप्रदेश ४२तसપરિમિત એટલે મુઠ્ઠીમાં સમાઈ શંકે એવો પાતળો હતો, પ્રશસ્ત હતા તથા पर विपक्षी (ary Rel) पाणु तु (कुडलु लिहिय गडलेहा कोमुइय रयणियरविमल पडिपुण्ण सोमवयणा) तेन पालम 6 ( गाल) ५२२ मत्राक्षी શોભા વધારવા બનાવેલ રચના) બનાવેલી હતી તે તેના કાનમાં પહેરેલા બને કુડલથી ઘસાતી હતી તેનું જે સૌમ્ય વદન ચુખ હતું તે ચદ્રિકાથી
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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