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________________ अगारधर्मसञ्जीवनी टीका अ. १ सू ११ धर्म. सत्यत्रतवर्णनम् २०७ ज जम्हा कम्हाइय घेत्तणुक्कोयमण्णा भणइ | त वह कूडसक्खा, -लीय जिणसामणे समुबइ ॥ ६ ॥ यद्यस्मात्कस्माच्चिच, गृहीत्वोत्कोचमन्यथा भणति । तद्भवति कूटसाक्ष्यालीक जिनशासने समुपदिष्टम् ॥ ६ ॥ प्रशस्तत्वस्यापास्तेषु च प्रशस्तत्वस्य, तथा प्राग्यबहुमूल्येप्पल्पमूल्यत्वस्याल्पमूल्येषु च वष्टुमृल्यत्वस्य यद्वा चमुक्षीरास्वल्पक्षीरात्वस्यात्पक्षीरासु च बहुक्षीरात्वस्य रयापन गवालीकम् । निष्क-रूप्यक हिरण्य रजत वस्त्र धान्यादीना कस्यचिद्विश्वस्तस्थ पुरुषस्य सविधे निभृत स्थापन न्यासस्तद्विषये यन्मिथ्याभाषणनाह जानामि तत्रस्तु कदा त्व महामनाः १ कः साक्षी ?" इत्यादिरूप तन्न्यासालीकम् | कस्यचिदपकारबुद्धया च यम्मात्कस्माच्चिदुपदामादाय - 'अहमनोप ( (३) गाय, घोडा, भैस आदि चौपायों मे जो प्रशस्त हो उन्हें अप्रशस्त कहना और जो अप्रशस्त हो उन्हे प्रशस्त कहना, तथा पहले की तरह अल्पमूल्यवालों को बहुमूल्य और बहुमृल्योको अल्पमूल्य वाला कहना, अथवा अधिक दूध देनेवाली गोको कम दूध देनेवाली कहना, और कम दूध देनेवालीको अधिक दूध देनेवाली कहना गो-अलीक है । (४) किसी विश्ववासपात्र पुरुषके पास मुहर, रुपया, सोना, चादी, वस्त्र, धान्य आदि रख देनेको न्यास या धरोहर कहते हैं । उसके विषय में मिथ्याभापण करना न्यास - अलीक है । जैसे -"मै तुम्हारी वस्तु नही जानता, तुमने मुझे कब दी थी ? बताओ कौन साक्षी - ( गवाह ) है ?" इत्यादि । ( 3 ) गाय, घोडा, लेश माहि योपगामा ने प्रशस्त ( सारा ) होय तेमने અપ્રશમ્સ ( નઠારા) કહેવા અને જે અપ્રશત હાય તેમને પ્રશન્ત કહેવા, તથા પહેલા સુજખ એછા મૃત્યવાળાને મેઘા મૃલ્યવાળા અને મેઘા મૃત્યવાળાને આછા મૂલ્યવાળા કહેવા, અથવા વધારે દૂધ દેનારી ગાયને ઓછુ દૂધ દેનારી કહેવી અને ઓછુ દૂધ દેનારીને વધુ દૂધ દેનારી કહેવી એ ગે-અલી (४) अध विश्वासपात्र चु३षनी पासे महोरो, ३पिया, सोनु, ३५, वस्त्र, धान्य ઞાદિ અનામત મૂકવા એ થાપણ કહેવાય છે તેના સખધમા મિથ્યાભાષણ કરવુ એ न्याय-असी ( थापा भोसो ) छे नेभड़े - "भने तारी वस्तुनी अमर नथी, ते भने हयारे भाथी हुती ? अडे, आयु तेनेो साक्षी छे ?" इत्याहि
SR No.009331
Book TitleUpasakdashangasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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