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________________ उपासकद १७२ एवमादिभिर्हि वाक्यैरात्मादीनि द्रव्याणि गुणीभूतत्वेनापरिबोध्य क्षणावस्थायि सुखात्मक पर्यामात्र प्रधानतया सूत्रित भातीति (१) । शब्द पते उपचार्यत इति शब्द लिहू काल पुरुषो पसर्गभेदेना rs भेदस्तत्प्रधानो नय:- शन्दनयः- पर्यायनानात्वेऽप्यर्थाभेदक इत्यर्थः यथासुनासीर वासवेन्द्र पुरुहूत पुरन्दरादिभिः पर्याये रेकस्यैव सुरपतिरूपस्यार्थस्य प्रतिपत्तिरिति (२) । प्रतिवाचक शब्दमर्थभेद इति यः समभिरोहति समाश्रयति स समभिरूढः, अयमभिप्रायः - यदा पुरन्दरादिरूपा सव्ज्ञा वक्ता विवक्षति, तदा तदितरवावादि गौण कर देता है-उसका बोध नही कराता रिन्तु क्षणस्थायि वर्तमान कालीन सुख पर्याय ही प्रधान करके उसका सूचन करता है । (२) जो बोला जाता है उसे शब्द कहते हैं । अर्थात् लिंग, कारक काल, पुरुष और उपसर्ग (प्र, वि, आदि) आदिका भेद होने पर भी जो पदार्थ में भेद नही मानता वह शब्द नय है । जैसे- शुनासीर, वासव, इन्द्र, पुरत, पुरन्दर - इत्यादि पर्यायवाची शब्दोंसे एक इन्द्र अर्थका बोध होता है । तात्पर्य यह है कि चाहे शुनासीर कहिए चाहे वासव या इन्द्र कह लीजिए चाहे पुरुहृत बोलिए या पुरन्दर बोलिए, शब्द नय की दृष्टिमें इनका भिन्न भिन्न अर्थ नहीं है, क्योंकि इन सबसे इन्द्र अर्थ ही प्रतीत होता है । (३) जो नय प्रत्येक शब्दका अर्थ भिन्न-भि न मानता है वह समभिरुढ नय है। तात्पर्य यह कि शब्द धातुसे बनते है और વિદ્યામાન દ્રવ્યને ગૌણુ કરી દે છે–તેના માધ નથી કરાવતા, પરન્તુ ક્ષણસ્થાયી વર્તમાનકાલીન સુખ–પર્યાયને જ પ્રધાન કરીને એનુ સુચત કરે છે (२) ने मोसादवामा आवे छे मेने शब्द उहे छे अर्थात् सिग, २४ पुस, પુરૂષ અને ઉપસ ( ×, વિ, આદિ ) દિના ભેદ હાવા છતા પણ જે પદાર્થ મા लेह नथी भानतो ते शब्द नय छे मरे, शुनासीर, वासव, ४९, ५३हूत, चु२४२, ઇત્યાદિ પર્યાયવાચક શબ્દોએ કરીને એક જ ઇદ્ર અર્થના માપ થાય છે. તાત્પર્ય એ છે કે ચાહે શુનાસીર કા ચાહે વાસન ચા ઇદ્ર કહેા ચાહે પુરૂર્હુત એલે કે પુરકર એલા, શબ્દનયની દ્રષ્ટિમા એના ભિન્ન ભિન્ન માઁ નથી, કાણુ કે એ બધા શબ્દેથી ઈંદ્ર અજ પ્રતીત થાય છે (૩) જે નય પ્રત્યેક શબ્દના અર્થોં ભિન્ન ભિન્ન માને છે તે સબિશ્ય નય છે
SR No.009331
Book TitleUpasakdashangasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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