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________________ ૧૨ प्रतापका " 1 P " 1 = " , मार्गनिधि=पदमार्ग प्रचारम्= रणनिहम् 'भशुग-प्रमाणे' अन्न्पृष्ठतो भाव 'अणुगज्जेमाणे' अनुगर्जन मेगन कुर्वन् 'हारेमाणे मो' हुए ! विष्ठ तिष्ठ इत्यादि, वाक्यैः पा=मारायन ' पुारेमाणे ' पूरकारयन् ' तिष्ठ २, नोचेचा हनिष्यामीत्यायाः समाया' अभितज्जेमाणे' अभि तर्जन् = ' रे निर्लज्ज ' इत्यादि स्वर्जन कृर्तन, 'अमितासेमाणे ' अभि प्रासयन्- भखास्रादिदर्शनेन श्रासमुत्पादयन् 'पिटुभ' पृष्ठतः चित्रात बोरस्य पृष्ठदेशतः जनुगच्छति = श्राद्धावति । तन म स चित्रातः त धन्य सार्थवाह पञ्चभि पुत्रै सार्धम् 'अप्पा' आमा 'मन्नर्मितञ्च यावत् समनुगच्छन्त यथाद्धावन्त पश्यति, ष्ष्ट्वा 'अथामे ४ , अस्थामा=आत्मवल रहितः, अलः सैन्परहितः, अधीर्यः = उत्माहरहितः पुरुषशरपराक्रम सन् अभितासेमाणे पिट्टाओ अणुगच्छइ ) धन्यसार्थवाह ने जय सुसमा दारिका को चिलात चोर द्वारा अटवी के मध्य में हरणकर ले जाई गई जब जाना तय वह अपने पांचों पुत्रो के साथ आत्मपष्ट होकर कवच घाध उस चिलात के पीछे २ पद चिह्नों का अनुसरण करता हुआ, मेघ के जैसी गर्जना करता हुआ, अरे ओ दुष्ट ! ठहर ठहर इस प्रकार से कहता हुआ, पुकार करता हुआ ठहर जा ठहर जा- नहीं तो में तुझे मार डालूगा इस प्रकार के वाक्यों से उसे घुलाता हुआ रे निर्लज्ज ! इस प्रकार से उसे तर्जित करता हुआ, तथा अस्त्र शस्त्र आदि के दिखाने से उसे त्रास उत्पन्न करता हुआ चला । (तरण से चिलाए त घण्ण सत्यवाह पचहिं पुत्तेहि सद्धिं अप्पज्ड अन्नद्व द्व० समणुगच्छमाण पासइ, पासित्ता अत्थामे अबले माणे पिट्ठाओ अणुगच्छद्द ) " જ્યારે ધન્ય સાવાડે સુમમા દારિકાને ચિલાત ચાર વડે અટવીમા હરણ કરીને લઈ જવાયેલી જાણી, ત્યારે તે પેાતાના પા૨ે પુત્રાની સાથે આત્મ ષષ્ટ થઈને કવચ આપીને તે ચિલાત ચારની પાછળ તેના પત્ર ચિહ્નોનુ અનુ સરણ કરતા મેઘના જેવી નિ કરતા “ અરે આ દુષ્ટ ! ઊભારે, ઊભારે, या प्रमाणे उडेता “ अलोरे, अलोरे, नडितर भरी गये। लभे" सा પ્રમાણે હાકલ કરતા, તેને ખેલાવતા અરે નિજ ! ' આમ તર્જિત કરતે તેમજ શસ્ર અસ્ર વગેરેને ખતાવીને તેને ત્રસિત કરતા ચાલ્યું सन्नद्ध (तरण से चिलाए त घण्ण सत्यवाद पचर्हि पुत्तेहिं सद्धि अप बद्ध० समणुगच्छमण पास, पासित्ता अत्थामे अबले 2
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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