SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 960
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६-६ वाताधर्मकथा 1 " • मार्गनिधि पदमार्ग प्रचारम् = परणचिहम् 'अणुन गाणे' अनुगन्पृष्ठतो धावन 'अणुगज्जेमाणे' अनुगर्जनागर्जना 'मारेमाणे 'हमो' दुष्ट ! विष्ठ तिष्ठ इत्यादि, वाक्यैः कारभारास्न पुरिमाणे 'पूस्कारयन् ' fag २, नोचेच्या निष्यामीत्यादिना तादयन् ' अमितज्जेमाणे ' अभि तर्जन्= ' रे निर्लज्ज ' इत्यादि पायेवर्जनां कुर्तन, 'अमितासेमाणे ' अभि नासयन्त्रशस्त्रादिदर्शनेन प्रासमुत्पादयन् 'पिटुभ' पृष्ठतः = चित्रात बोरस्य पृष्ठदेशत' जनुगच्छति=प्रथाद्वावति । तत. ग्लु स चिलातः तन्य सार्थवाह पञ्चभि पुत्रैः सार्धम् ' अप मात्माष्ट 'सन्नवद्धर्मिताच यावत् समनुगच्छ त=पथाद्धावन्त पश्यति, षष्ठा 'अत्थामे ? ' अस्थामा = आत्मबल रहितः, अ: = सैन्परहित, अवीर्य' = उत्मादरहित, पुरुपकारपराक्रम सन् अभितामाणे पिट्टाओ अणुच्छ) धन्यमावार ने जब सुसमा दारिका को चिलात चोर द्वारा अटवी के मध्य में हरणकर ले जाई गई जब जाना तय वह अपने पाचों पुत्रों के साथ आत्मपष्ट होकर कवच बाघ उस चिटात के पीछे २ पद चिह्नों का अनुसरण करता हुआ, मेघ के जैसी गर्जना करता हुआ, अरे ओ दुष्ट ! ठहर ठहर इस प्रकार से कहता हुआ, पुकार करता हुआ ठहर जा ठहर जा नहीं तो में तुझे मार डालूंगा इस प्रकार के वाक्यों से उसे बुलाता हुआ रे निर्लज्ज ! इस प्रकार से उसे तर्जित करता हुआ, तथा अस्त्र शस्त्र आदि के दिखाने से उसे त्रास उत्पन्न करता हुआ चला । (aण से चिलाए त घण्ण सत्यवाह पर्चा पुत्तेहि सद्धिं अप्पउष्ठ अन्नद्धबद्ध० समणुगच्छमाण पासह, पासित्ता अत्थामे अबले माणे पिट्ठाओ अगद्द ) જ્યારે ધન્ય સાવાડે સુમમા દારિકાને ચિલાત ચાર વડે અવીમા હરણુ કરીને લઈ જવાયેલી જાણી, ત્યારે તે પાનાના પા૨ે પુત્રાની સાથે આત્મ ષષ્ઠ થઈને કવચ ખાધાને તે ચિલાત ચારની પાછળ તેના પદ્મ ચિહ્નોનુ ઋતુ સરણ કરતા મેઘના જેવી ધ્વનિ કરી “ અરે એ દુષ્ટ ! ઊભારે, ઊભા, આ પ્રમાણે કહેતા जभारे, जिभेोरे, नडितर भरी गये। लभे" सा પ્રમાણે હાકલ કરતા, તેને ખેલાવતા અરે નિજ ! ? આમ જિત કરતે તેમજ શસ્ત્ર અસ્ર વગેરેને બતાવીને તેને ત્રસિત કરતા ચાર્લ્સે 66 " (तरण से चिलाए त घण्ण सत्यवाह पचर्हि पुत्तेर्हि सद्धिं अवच्छ सनद बद्ध० समणुगच्छमाण पासइ, पासित्ता अत्थामे अबले 27 रिसकार ܐܙ
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy