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________________ अनगारधर्मामृतषिणी टी० अ० १८ सुसुमादारिकाचरितनिरूपणम् ६८१ टीका-तएण से ' इत्यादि । तन' खलु स धन्य' सार्थहो यत्रैव स्वक गृह तौर उपागच्छति, उपागत्य सुबहु बनकनक सुसुमा च दारिकाम् अपहता ज्ञात्वा 'महत्य महग्य मदारिह ' महार्थ महार्य महार्हम्-महानर्थः प्रयोजन यस्मिन् तत्-महार्थ-प्रहापयोजनाम् , बहुमूल्य पुनः महता योग्यम् ' पाहुडं ' प्राभृत= उपायन गृहीत्या यौर णगरगुत्तिया' नगरगोप्तृका-नगररक्षका कोपालादयः तव उपागन्छति, उपागत्य तत् महार्थं यावत् महाघ महार्ह मामृतम् ' उनणेड ' उपनयति-समर्पयति, उपनीय-समर्प्य एवम पदत्-एव खलु हे देवानु 'तएण से धन्ने सत्यवाहे' इत्यादि। टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद (से वन्ने सत्यवाहे ) वह धन्य सार्थवाह (जेणेव सएगिहे तेणेव उवागच्छड ) जहा अपना घर था वहाँ आया (उवागच्छिता सुपर बणझणग स्तुसम च दारिय अवहरियं जोणित्ता महत्थं माग्ध महरिय पाहुड गहाय जेणेव नगर गुत्तिया तेणेव उवागच्छ ) वहा आकरके उसने अपने घरों से बहुत सा धन कनक एव सुममा दारिका को हरण किया हुआ जब जाना तब वह महार्थ पमूल्य एव महापुरुपो के योग्य भेंट लेकर जहां नगर रक्षक -कोटपाल-आदि थे वहा गया-(उवागच्छित्ता त महत्थमग्ध महरिह पाहुड जाव उवणेति, उपणित्ता एव क्यासी) वहा जाकर उसने उस महाप्रयोजन साधक भूत बहुमूरय तथा महापुरुषों के योग्य भेंट को उनके समक्ष रसदिया-और रखकर उनसे उसने इस प्रकार कहा-(एव 'तएण से धन्ने सत्यवाहे' इत्यादि साथ-(तरण ) त्या२५ (से धन्ने सत्थवाहे ) ते धन्य सवाल (जेणेव सरगिहे तेणेव उवागच्छइ ) ज्या पातानु ३२ संतु त्या मान्य। (उवागच्छित्ता सुबहु धणरणग मुसम च दारिय अवहरिय जाणित्ता महत्थ महग्ध महरिय पाहुड गहाय जेणेव नगर गुत्तिया तेणेव उवागच्छद) ત્યાં આવીને તેણે પોતાના ઘરમાથી પુષ્કળ પ્રમાણમાં ધન, કનક અને સુસમા દારિકાનું હરણ કરવામાં આવેલુ જાણીને તે બહાર્થ, બહુ કિંમતી અને મહાપુરુષોને એગ્ય ભેટ લઈને જવા નગર–રક્ષક-પાળ-વગેરે હતા ત્યા गयो ( उवागच्छित्ता त महत्य महान महरिह पाहुड जार उवणे ति, अणित्ता एन पयासी) त्याने ते ते महायान साभूत बहु भिती तमा મહા પુરુષોને ય ભેટને તેમની સામે મૂળ દીધી અને મૂકીને તેમને તેણે આ પ્રમાણે વિનતી કરતા કહ્યું કે
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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